22 मई, 2020

नफरत की दीवार खिंची


 
खिच गई  दीवार नफरत की
 दो दिलों के बीच आपस में
 कैसे उसे  खँडहर कर पाएंगे
मलवे को दूर  हटाएंगे कैसे |
दिल में टूटा शीशा घुसा है
मन में मैल भीषण भरा है
रक्त का रिसाव बहुत हो रहा 
 उसे नियंत्रित कर पाएगे कैसे |
हर समय कोई न होगा मध्यस्थ 
आपस में बीच बचाव के लिए
 आपस में समझोते तक पहुंचेंगे कैसे 
सुलह सफाई  कर पाएंगे कैसे |
हालात बाद से बत्तर हुए है
अब कोई उम्मीद नहीं रही शेष
 उलझन से निजाद को   पाने की
 उसको हल करने की होगी पहल कैसे |
पहले कौन झुके कौन पहल करे
अभी तक निराकरण हो नहीं पाया
यूँही समय बरबाद करने से क्या लाभ
इसका कोई हल खोज पाएंगे कैसे |
आशा

21 मई, 2020

नटखट मनमोहन



पीताम्बर  धारण किया है
 काली कमली ओढी 
मोर मुकुट शीश पर सजा है
हुए है तैयार वन को जाने को
धेनुओं को चराने को
हाथों में  बाँसुरी लिए हैं
संग लिए है ग्याल बालों को
दिन कब बीत जाता है
 वहां ज्ञात नहीं होता
सूर्यास्त होते ही
शाम की दस्तक होती है
 ध्यान आता है कान्हां को
 घर  को करना है  प्रस्थान  
पर माखन चोरी  तो रह गई
नींद कैसे आएगी उसके बिना
खैर कुछ देर और सही
यशोदा माँ की डांट सह्लेंगे
 वे एक घर के  सामने रुके 
जल्दी से खिड़की खोल
कूद गए भोजन कक्ष में
देखी दही की हांडी
खुद को रोक नहीं पाया
कुछ खाया कुछ फैलाया
 कुछ  मित्रों को खिलाया
फिर दौड़ लगा दी घर को
बेचारी गोपी  दौड़ी पीछे
पर हाथ न आ पाए
जब की शिकायत यशोदा माँ से
झूठा उसे ही ठहरा  दिया
साफ निकले बच  के
ऐसे हैं मन मोहन छलिया
कोई नहीं जान पाया 
क्या मन  में रहता उनके |
आशा