01 जून, 2020

मनमुटाव आपस का

रात भर करवटें बदलीं
तुम्हारे इंतज़ार में
मगर  तुम न आए
क्यूँ झूटे वादे किये उससे ?
क्यूँ  यूँ ही बहकाया उसे |
तुमने यह तक न सोचा
कि क्या गुजरेगी उस पर
वह तो दिन रात परेशान हाल रहती
 खोई रहती तुम्हारी यादों में |
इंतज़ार और कितना कराओगे उसे  
उसकी जगह यदि तुम होते
क्या हाल होता तुम्हारा
यह भी सोच कर देखना |
जब दफ्तर से आने में देर हो जाती थी  तुम्हें
 वह एकटक द्वार पर निगाहें टिकाए रहती थी
किसी काम में भी मन न लगता था
अधिक देर होने पर शिकायतों का
अम्बार लगा देती थी |
तुम भी क्षमा याचना करते नहीं थकते थे
अब बात तो दूर हुई
एक दूसरे को देख ना भी नहीं चाहते
अब इतना बदलाव किस लिए ?
कोई  कारण तो रहा  होगा |
जब तक आपस में बातचीत न करोगे
कोई मसला हल न होगा
किसी को तो पहल करनी होगी
मसला हल कैसे होगा |
आशा

31 मई, 2020

एक और मील का पत्थर(भूमिका "आकांक्षा ")

मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि आदरणीय  पाठकों  के समक्ष प्रस्तुत है मेरी पुस्तक आकांक्षा(ग्यारहवा कविता संकलन) जिसकी भूमिका लिखी है श्रीमती साधना वैद ने |लीजिये प्रस्तुत है भूमिका -

एक और मील का पत्थर
मन आत्म विभोर है की मती दीदी आदरणीय आशा लता सक्सेना जी जा एक और नवीन कविता
संग्रह”आकांक्षा “ शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है |यह उनका ग्यारहवा कविता संग्रह है |
लेखन की गजब की क्षमता है दीदी में और वे जो भी लिखती हैं वह पाठकों के हृदय पर अपनी अमित छाप छोड़ जाता है |
समय के साथ दीदी के लेखन में दिन व् दिन निखार आया है रचनाओं में संवेदना सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जा  रही है भावों में अतुलनीय गहराई आई है और वैचारिक स्तर पर भी रचनाएं चिंतनीय ,गंभीर एवं सम्प्रेशानीय होती ही  है|विषयानुरूप शब्दों के चयन में भी उन्हें महारत हांसील है |उनके मन में मस्तिष्क में विचारों का
अविरल निर्झर सतत प्रवाहमान रहता है विषय सुझा ते ही उनकी रचना पलों में अपना मनोहारी रूप और आकार लेलेती है |
यह उनकी अद्भुद सृजन शीलता का परिचायक है |उनकी लेखनी हर विषार पर खूब चलती है |
हमारे आसपास की कोई भी घटना कोई भी पात्र या कोई भी प्रसंग उनकी रचना का कथ्य बन जाता है |
हर विषय के विश्लेषण करने  की  उनकी दृष्टि विरल है और सहज ही प्रभावित कर लेती हैं
इस काव्य की सभी रचनाएं बहुर सुन्दर  एव् प्रभावी हैं  |
पंखुड़ी ,बयार ,मन बचपन का ,दुआ बद्दुआ ,मुझे न्याय चाहिए आदि अनेक रचनाएं हैं जिनकी भाव भूमि  अत्यन्त सशक्त है और लेखिका ने बड़ी दक्षता के साथ अपनी भावनाओं को उनपर उकेरा है |
दीदी की रचना धर्मिता को मैं हृदय से नमन करती हूँ एवं आशा करती हूँ कि उनका यह काव्यसंकलन “आकांक्षा” पाठकों के मन को निश्चित रूप से मोहित करेगा |
इस आलेख के माध्यम से अपनी अशेष शुभकामनाएं और शुभिच्छाएं दीदी के लिए प्रेषित कर रही हूँ |
उनकी लेखनी अबाध गति से चलतीरहे एवं हमलोगों के लिए प्रेरणा का  स्त्रोत बनी रहे यही मनोकामना है |
इस काव्य संकलन के प्रकाशन अधीरता से प्रतीक्षा है |
ढेर सारी अग्रिम बधाई और अनंत अशेष शुभ कामनाओं के साथ |

साधना वैद(कवियत्री एवम लेखिका )

30 मई, 2020

हुस्न की नियामत




अल्लाह ने हुस्न की नियामत दी है तुम्हें
हर किसी को यह  भी नसीब नहीं होती
पर तुम्हें रास नहीं आई वह अनमोल भी
पर एक बात अवश्य हुई जब  से हुई  मुलाक़ात   
हुस्न की बिजली गिराना आ गया तुम्हें
एक दिल पर पहरा दिया जब उसने
कई दिलों पर बिजली गिराना आगया तुम्हें |
                                               आशा

28 मई, 2020

मानवता





मानवता -

हुई मानवता शर्मसार
रोज  देखकर  अखवार
बस एक ही सार हर बार
मनुज के मूल्यों का हो रहा हनन   
 ह्रास उनका परिलक्षित
 होता हर बात में
आसपास क्या हो रहा
 वह नहीं  जानता
जानना भी नहीं  चाहता
है लिप्त आकंठ 
निजी स्वार्थ की पूर्ति में
किसी भी हद तक जा सकता है
सम्वेदना की कमीं हुई है
दर्द किसी का अनुभव न होता
वह केवल अपने मे
 सिमट कर रह गया है
सोच विकृत हो गया है
दया प्रेम  क्या  होता है
 वह नहीं जानता
 वह भाव शून्य  हुआ है 
मतलब कैसे पूरा हो
बस  वह यही जानता
आचरण भृष्ट चरित्र निकृष्ट
और क्या समझें
है यही सब चरम पर
मानवता शर्मसार हुई है
अनियंत्रित व्यबहार से 
चरित्र क्षरण  हो गया है 
आए दिन की बात 
समाज में विकृतियों का आवास
यह  हनन नहीं है तो क्या  ?
मानव  मूल्यों का |

27 मई, 2020

शलभ



ढलने लगी  शाम
धुंधलका बढ़ने लगा
रात्रि ने किया आगाज
शमा जली महफिल में
 रौशन समा होने लगा
 वायु बेग से लौ उलझी
 हिलाने डुलने लगी
शमा में आया निखार
अनोखा रंग जमा महफिल में
मौसम खुशरंग हुआ
चंचल चित्त शलभ तभी  
हुए आकृष्ट शमा की ओर
गाते गुनगुनाते
 खिचे चले आए
उस ओर जहां थी रौशनी
उन्हें भय नहीं था
निकट जाने का
पहले पंख जले उनके
फिर भी न हटे वहां से
पूरे जोश से फिर से उड़े
पहले लड़खड़ाए फिर सम्हले
अब इतने करीब आए
  कि जान ही भेट चढ़ा  बैठे
 रहा संतोष उन्हे इस बात का
कि शमा का साथ पा लिया
प्रेम प्रदर्शन किया  
पल भर को ही सही
शमा रात भर जलती रही
रौशन किया महफिल को
परहित के लिए
पर  शलभ हुए उत्सर्ग
शमा का साथ पाने के लिए
अपना प्रेम शमा के लिए
 सब को दर्शाने के लिए |
आशा  
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