08 जून, 2020

विचलन मन का


 

 आशा  के  पालने  में झूला
ऊंची से ऊंची पैंग बढ़ाई   
मन को फिर भी चैन न आया
तेरा मन क्यूँ घबराया?
निराशा ने डेरा डाला
 तेरे मन के आँगन में
शायद इसी लिए उससे
 तेरा मन  भाग न पाया |
यही विचलन मन में
ठहराव  नहीं  जीवन में  
 किसी निष्कर्ष पर पहुँच  मार्ग
प्रशस्त भी न हो पाया |
कैसे निकले मन की कशमकश से
उलझनों की दुकान से
कहीं तो शान्ति के दर्शन हों
ऊंची पैंगों  का कुछ तो प्रभाव हो |
एक ही आशा लगाए हूँ
बारह वर्ष में तो
घूरे के भी दिन फिरते
फिर तेरे   नहीं क्यूँ  ?
ईश्वर  सब देख रहा है
तुझसे क्यूँ  है  दूरी  उसकी
वरदहस्त जब सर पर होगा 
तेरी निराशा का कोहरा छटेगा |
आशा

06 जून, 2020

तूफान


सागर ने रौद्र रूप धारण किया
तेज गति से तूफान उठा   
आगे बढ़ा टकराया तटबंध से
  पास के घर ताश के पत्तों से  ढहे  
जब मिलने आया तूफान  उनसे |
रहने वाले हुए स्तब्ध  कुछ सोच नहीं पाए
 दहशत से उभर नहीं पाए
देखा जब उत्तंग उफनती
लहरों को टकराते तट से |
गति थी इतनी तीव्र तूफान की  
ठहराव की कोई गुंजाइश न थी
पर टकराने से गति में कुछ अवरोध आया
 बह कर आए वृक्षों ने किया  मार्ग अवरुद्ध |
  ताश के पत्तों से बने बहते मकान
  कितनी मुश्किल से ये बनाएगे होंगे
कितना कष्ट सहा होगा मकान बनाने में
उसे सजाने सवारने में |
प्रकृति भी कितनी निष्ठुर है
ज़रा भी दया नहीं पालती   
थोड़ा भी समय नहीं लगता
 सब मटियामेट करने में |
बरबादी का यह आलम देखा नहीं जाता
आँखें भर भर आती हैं यह दुर्दशा देख
जाने कब  जीवन पटरी  पर लौटेगा फिर से  
 सोच  उदासी छा जाती है मन में |
आशा