06 जून, 2020

तूफान


सागर ने रौद्र रूप धारण किया
तेज गति से तूफान उठा   
आगे बढ़ा टकराया तटबंध से
  पास के घर ताश के पत्तों से  ढहे  
जब मिलने आया तूफान  उनसे |
रहने वाले हुए स्तब्ध  कुछ सोच नहीं पाए
 दहशत से उभर नहीं पाए
देखा जब उत्तंग उफनती
लहरों को टकराते तट से |
गति थी इतनी तीव्र तूफान की  
ठहराव की कोई गुंजाइश न थी
पर टकराने से गति में कुछ अवरोध आया
 बह कर आए वृक्षों ने किया  मार्ग अवरुद्ध |
  ताश के पत्तों से बने बहते मकान
  कितनी मुश्किल से ये बनाएगे होंगे
कितना कष्ट सहा होगा मकान बनाने में
उसे सजाने सवारने में |
प्रकृति भी कितनी निष्ठुर है
ज़रा भी दया नहीं पालती   
थोड़ा भी समय नहीं लगता
 सब मटियामेट करने में |
बरबादी का यह आलम देखा नहीं जाता
आँखें भर भर आती हैं यह दुर्दशा देख
जाने कब  जीवन पटरी  पर लौटेगा फिर से  
 सोच  उदासी छा जाती है मन में |
आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

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  2. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    07/06/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  3. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |

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  4. वाह!आशा जी ,बहुत सुंदर सृजन ।

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  5. धन्यवाद शुभा जी टिप्पणी के लिए |

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  6. ये परीक्षा की घड़ियाँ हैं ! इंसानों के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं भगवान् ! ये दिन भी बीत ही जायेंगे ! सुन्दर सृजन !

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