सागर ने रौद्र रूप धारण किया
तेज गति से तूफान उठा
आगे बढ़ा टकराया तटबंध से
पास
के घर ताश के पत्तों से ढहे
जब मिलने आया तूफान उनसे |
रहने वाले हुए स्तब्ध कुछ सोच नहीं पाए
दहशत से उभर नहीं पाए
देखा जब उत्तंग उफनती
लहरों को टकराते तट से |
गति थी इतनी तीव्र तूफान की
ठहराव की कोई गुंजाइश न थी
पर टकराने से गति में कुछ अवरोध आया
बह
कर आए वृक्षों ने किया मार्ग अवरुद्ध |
ताश
के पत्तों से बने बहते मकान
कितनी मुश्किल से ये बनाएगे होंगे
कितना कष्ट सहा होगा मकान बनाने में
उसे सजाने सवारने में |
प्रकृति भी कितनी निष्ठुर है
ज़रा भी दया नहीं पालती
थोड़ा भी समय नहीं लगता
थोड़ा भी समय नहीं लगता
सब मटियामेट करने में |
बरबादी का यह आलम देखा नहीं जाता
आँखें भर भर आती हैं यह दुर्दशा देख
जाने कब जीवन पटरी
पर लौटेगा फिर से
सोच उदासी छा जाती है मन में |
आशा
सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
07/06/2020 रविवार को......
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शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
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धन्यवाद
सुप्रभात
हटाएंआभार सर सूचना के लिए |
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
वाह!आशा जी ,बहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंये परीक्षा की घड़ियाँ हैं ! इंसानों के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं भगवान् ! ये दिन भी बीत ही जायेंगे ! सुन्दर सृजन !
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