समाज देख रहा मूँद नयन सब
जो हो रहा जैसा भी हो रहा
बिना सुने और अनुभव करे
निर्णय तक भी पहुँच रहा |
उसकी लाठी है बेआवाज
जब चलेगी हिला कर रख देगी
दहला देगी दिल को
और सारे परिवेश को
केवल बातों के सिवाय
होगा कोई न निकाल |
और अधिक उलझनों की
लग जाएगी दुकान
कैसे इनसे छुटकारा मिलेगा
कभी सोचना समय निकाल |
शायद कोई हल खोज पाओ
मुझे भी निदान बता देना
समाज रूपी नाग के दंश से
कैसे आजादी पाऊँ मुझे भी जता देना |
जब होगा तालमेल समाज से
तभी शान्ति मन को होगी
जीवन की समस्याएँ तो
अनवरत चलती रहेंगी |
वे आई हैं जन्म के साथ
और जाएंगी मृत्यु के साथ
अब और परेशानी नहीं चाहिए
जितनी है वही है पर्याप्त |
आशा