किसी को सारा आसमाँ नहीं मिलता
कितने भी यत्न कर लो सारा जहां नहीं मिलता
है यह नसीब का खेल या विधान विधाता का
जितना चाहो जब चाहो नहीं मिलता |
बहुत प्रयत्न करने पड़ते हैं
उस ऊंचाई तक पहुँचने के लिए
अधिकतर असफलता ही हाथ आती है
तब ही सफलता झांकती है कायनात के किसी झरोखे से |
यह तो नियति का है फैसला जिसे चाहे नवाजे
खुशकिस्मत है वह जो इस ऊंचाई तक पहुंचे
संजोग से या प्रयत्नों से यह तो बता नहीं पात़ा
प्रसाद पा प्रसन्न होता उन्नत होता भाल गर्व से |
आशा
सुंदर
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हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा सोमवार ( 07-12-2020) को "वसुधा के अंचल पर" (चर्चा अंक- 3908) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार मीना जी |
सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंशानदार सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर और सारगर्भित अभिव्यक्ति..।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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