06 दिसंबर, 2020

किसी को पूरा जहां नहीं मिलता

 


                                                      किसी को सारा आसमाँ नहीं  मिलता

कितने भी यत्न कर लो  सारा  जहां नहीं मिलता

है यह नसीब का खेल या विधान विधाता का

 जितना चाहो जब  चाहो  नहीं मिलता |

बहुत प्रयत्न करने पड़ते हैं

 उस ऊंचाई तक पहुँचने के लिए

अधिकतर असफलता ही हाथ आती है

 तब ही सफलता झांकती है कायनात के किसी झरोखे से |

यह तो नियति का है फैसला जिसे चाहे नवाजे

  खुशकिस्मत  है वह जो इस ऊंचाई तक पहुंचे

संजोग से या प्रयत्नों से यह तो बता नहीं पात़ा

 प्रसाद पा  प्रसन्न होता उन्नत होता भाल गर्व से |

आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा सोमवार ( 07-12-2020) को "वसुधा के अंचल पर" (चर्चा अंक- 3908) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार मीना जी |

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  2. सुंदर और सारगर्भित अभिव्यक्ति..।

    जवाब देंहटाएं

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