07 दिसंबर, 2023

क्षणिका

दो शब्द खो गए दूसरे शब्दों  से  मिल कर 

हिरा गए   कहीं जा कर 

खोजा मन के  हर कौने में 

बाहर भी खोजा गहराई से 

सिर्फ वहीं नहीं मिल पाया  

 मेरे भाव भी सारी जिन्दगी

वहीं अटक कर रह जाते हैं  |

 

एक ही कार्य करने से

मन कभी बोझिल हो जाता है

यदि कोई बदलाव नहीं किया

 जीवन बेरंग हो जाता है 

 किसी काजल की कोठरी में |

सिमट कर रह जाता है |


जिसने कहा कार्य बदलो 

मन डावाडोल नहीं होगा 

उस  ने बहकाया है तुम्हें 

तुम एक कार्य ही चित्त लगा  कर करो 

उस कार्य में आनंद आजाएगा |


|शिद्दत से किया कार्य व्यर्थ नहीं जाता

 मार्ग पर जाने से आगे का मार्ग प्रशस्त होता 

वह सही मार्ग ही दिखलाता 

आगे सफलता मिलती है

महनत व्यर्थ नहीं जाती 

सफलता जीवन में रंग भरती है |

|आशा सक्सेना 

झुकाव धर्म की ओर

 

झुकाव धर्म  की ओर

हुआ  जीवन अधूरा तुम्हारे बिना

पहले भी खालीपन रहता था

जब कभी तुम बाहर जाते थे

जल्दी ना लौट पाते थे |

आते ही मेरी  शिकायतों की

 दुकान लग जाती थी

फिर भी  देर तक रूठी ना रह पाती थी

मन ही जाती थी |

अब वह भी संभव नहीं

तुमने साथ जब  छोड़ा मैं  अकेलेपन से घिरी

अब किसी का साथ नहीं है

मन पर बोझ भारी है |

कितनी कोशिश करती हूँ

मन को व्यस्त रखने की

पर चित्त एकाग्र नहीं हो पाता

कैसे उसे समझाऊँ ,यह किसी ने न बताया  |

धीरे धीरे आध्यात्म की ओरझुकाव होने लगा

 शायद सफल हो पाऊं इसमें कुछ तो कर  पाऊं

प्रभु को पाकर ही अपने को धन्य मानूं |

आशा सक्सेना

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06 दिसंबर, 2023

अंतर राष्ट्रीय बालिका दिवस

 

है आज बालिका दिवस

बड़ी खुशी होती यदि

केवल  कागज़ पर न मनाते इसे

जो बड़ी बड़ी बातें करते मंच पर

उनका अमल जीवन में न  करते

 सही माने में उसे  मनाया जाता |

बालिकाओं को केवल 

दूसरे दर्जे का नागरिक न कहा जाता  

उन्हें अपने अधिकारों से 

वंचित न किया जाता

आज के युग में बड़ी बड़ी बातों को

बहुत विस्तार से प्रस्तुत किया जाता

जब सच में देखा जाता

मन को कष्ट होता यही सब देख

कथनी और करनी में भेद भाव क्यों ?

हमारा प्रारम्भ से ही अनुभब रहा

कितना भेद भाव रहता है

लड़कों और बालिकाओं के

 लालन पालन में

 बहुत दुभांत होती है दौनों में  |

हर बार वर्जनाएं सहनी पड़ती है

 बालिकाओं को

लड़कों को किसी बात पर 

 रोका टोका नहीं जाता

इसी व्यबहार से  मन को 

बहुत कष्ट होता है

यदि  सामान व्यबहार किया जाता दौनों में

 ऐसे दिवस मनाने न पड़ते |

लोग अपने बच्चों

में भेद न करते

सबसे सामान

 व्यवहार करते से  

कथनी और करनी में

कोई भेद न होता

क्या आवश्यकता रह जाती 

बालिकाओं के संरक्षण की

वे भी सामान रूप

 से जीतीं खुल कर |

 

आशा सक्सेना 

05 दिसंबर, 2023

कैसे लिखूं कविता

 “कैसे लिखू कविता”

मुझे  छंदों का ज्ञान नहीं

ना ही मुझे मीटर का बोध

कभी बड़ी कमी लगती है

लेखन मैं  परिपक्वता नहीं आई अब तक  |

 मन  है निराश क्यों अब समझ में आया

केवल शब्द चुनने से कविता नहीं बनती

 कोई विचार लिपि बद्ध करने से

कविता का रूप नहीं सुधरता |  

मन पर  प्रभाव नहीं पड़ता

जब तक विचार सशक्त नही होता

उसे बिम्बों से सजाया नहीं जा सकता

छंदों में  ठीक से ढाला नहीं जाता | 

जो कहना चाहती हूँ कह नहीं पाती

वह खुशी नहीं मिलती जिसकी रहती अपेक्षा  

सीधी सच्ची बातों को लिपि बद्ध करने में

भावों को विशेष रूप से ढालने में चौपाई में |

रही असफल कविता लिखने में

पर कोशिश नहीं छोड़ी कभी सफलता आएगी 

सबने कहा किसी और विधा में लिखो

पर है कोशिश बेकार मन ने नहीं स्वीकारा इसे

जैसा भी लिखूं सब मुझे अच्छा लगता है |

स्वयं की संतुष्टि के लिए यह भी कम पड़ता है

विविध विचारों को रंग देती हूँ प्रसन्नता के लिए खुद के मन की खुशी के लिए

सोचती हूँ कभी तो सफलता होगी  मेरे पास |

आशा सक्सेना      .  

हाइकु (तोता )

 

 


१-यह है पक्षी
रंग उसका हरा 
चौंच है लाल  

२-उड़ता पक्षी 
  पंख फैला खुशी से 
यहाँ से वहां 

३-हरियाली है 
बागों में  बहार है 
सुगंध फैली 

४- सुबह की सैर 
खुशियाँ भर रहीं 
जीवन जीवंत 

५-तोता आया है 
मीठी बोली बोलता 
मन लुभाता 

आशा सक्सेना 



03 दिसंबर, 2023

जंगल का नजारा

 

सूखे पीले पत्ते बिछे सारी  राह में

हवा के साथ में  बह चले

धूल धक्कड़ होती  चारो ओर

वहां खड़े रहना होता मुश्किल |

 पतझड़ का मौसम बड़ा अजीब  लगता

सूखी डालियाँ नजर आतीं

 वन वीरान होते जाते

 कुछ पेड़ों में हरी पत्तियाँ झाँकतीं डालियों के कक्ष से  |

कुछ समय के बाद पेड़ में हरियाली के दर्शन हुए

लहलहाई पत्तियों से लदी डालियाँ

अनोखा आकर्षण आया लहराती डालियों में

गीत गाते रंग बिरंगे  पक्षी यहाँ यहाँ वहां डोलते |

जब कानों में गूंजती वह  मधुर ध्वनि

पैर स्वतः ही बढ़ने लगते जंगल  की ओर

उसमें ही रमना चाहते वहां हरियाली में

घूमना चाहते ताजी हवा में |

भुवन भास्कर के आते ही पत्तियों पर

पैर पसार् लेतीं रश्मियाँ

पूरा बाग़ चमक उठता उनकी आभा से

मन होता कुछ देर ठहर जाऊं वहां |

आशा सक्सेना 

02 दिसंबर, 2023

है जीवन अधूरा तुम्हारे बिना

 है जीवन अधूरा प्रिय  तुम्हारे बिना

पहले भी खालीपन रहता था

जब कभी तुम बाहर जाते थे

जल्दी ना लौट पाते थे |

आते ही मेरी  शिकायतों की

 दुकान लग जाती थी

फिर भी  देर तक रूठी ना रह पाती थी

मन ही जाती थी |

अब वह भी संभव नहीं

तुमने साथ जब  छोड़ा मैं  अकेलेपन से घिरी

अब किसी का साथ नहीं है

मन पर बोझ भारी है |

कितनी कोशिश करती हूँ

मन को व्यस्त रखने की

पर चित्त एकाग्र नहीं हो पाता

कैसे उसे समझाऊँ ,यह किसी ने न बताया  |

धीरे धीरे आध्यात्म की ओरझुकाव होने लगा

 शायद सफल हो पाऊं इसमें कुछ तो कर  पाऊं

प्रभु को पाकर ही अपने को धन्य मानूं |

आशा सक्सेना

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