05 अक्टूबर, 2010

कवि

रहता भावना के समुद्र में ,
जीता स्वप्नों की दुनिया में ,
गोते लगाता ,
ऊपर नीचे विचारों में ,
सुख हो या दुःख ,
उन्हें दिल से लगाये रहता ,
संबल ह्रदय का देता ,
कैसी भी छबी क्यूँ ना हो ,
ह्रदय में उतार लेता ,
शब्द जाल बुनता रहता ,
वह स्वयं नहीं जानता ,
जानना भी नहीं चाहता ,
वह कहाँ खोया रहता है ,
किस दुनिया में रहता है ,
जैसे स्वप्न रंगीन होते हें ,
तो कभी बेरंग भी ,
जीवन उसका भी होता है ,
कभी रंगीन,
तो कभी बे रंग ,
सामान्य बहुत कम रहता है ,
मन की बात किसी से,
कहना भी नहीं चाहता ,
किसी से बांटना भी नहीं चाहता ,
होती अधिक अकुलाहट जब ,
एकांत में घंटों ,
गुमसुम बैठा रहता है ,
अपने में खोया रहता है ,
एकाएक उठता है,
लिखना प्रारम्भ करता है ,
नयी कविता का ,
सृजन करता है ,
कुछ होती ऐसी ,
जो दिल को छू जाती हें ,
पर कुछ तो ,
सर पर से गुजर जाती हें ,
उसे समझना सरल नहीं ,
होता व्यक्तित्व दोहरा उसका ,
लेखन में कुछ झलकता है ,
और वास्तव में ,
कुछ और होता है ,
आकलन ऐसे व्यक्तित्व का ,
कैसे किया जाए ,
परिभाषित 'कवि 'शब्द को ,
कैसे किया जाए ||
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. दीदी प्रणाम,
    कर्म स्वत्रंता और कल्पनाशीलता की ईश्वर ने कितनी प्यारी सौगात दी है मानव को. कोई सृजन करता है तो कोई विनाश.
    सृजनता में बहुत मेहनत है और परिणाम प्राप्त होने पर बेहद ख़ुशी भी. अत: हर सृजनकर्ता को मेरा सलाम.
    बहुत ही सुन्दर विचार हैं आपके. :)
    रोशनी

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  2. कैसे किया जाए ,
    परिभाषित 'कवि 'शब्द को
    कवि की मनोदशा का और कार्यपद्धति का सुन्दर भावाभिव्यक्ति किया है आपने.
    शायद कवि को परिभाषित कर पाना सम्भव ही नहीं है.

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  3. इसमें कोई दो राय नहीं कि कवि दोहरे व्यक्तित्व का स्वामी होता है ! एक रूप उसका सामाजिक प्राणी का होता है और दूसरा रूप कलाकार का ! सामाजिक व्यक्ति सबसे जुड़ा होता है और जब उसके मन का कवि जागृत होता है तो वह स्वयं को सबसे पृथक कर एकांत में खो जाना चाहता है ! सुन्दर रचना ! बधाई एवं आभार !

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  4. कवि ह्रदय दोहरी भूमिका निभाता है इसमें कोई दो मत नहीं.... एक निजी जिंदगी और एक सामाजिक जिंदगी .. आरम्भ में भले ही वह अंतर्मुखी हो लेकिन धीरे धीरे उसका बहिर्मुखी होना लाजिमी है ...
    बहुत अच्छी तरह परिभाषित किया है आपने कवि ह्रदय को...हार्दिक शुभकामना

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  5. रहता भावना के समुद्र में ,
    जीता स्वप्नों की दुनिया में ,
    गोते लगाता ,
    ऊपर नीचे विचारों में ,
    सुख हो या दुःख ,
    उन्हें दिल से लगाये रहता ,
    संबल ह्रदय का देता ,
    कैसी भी छबी क्यूँ ना हो ,
    ह्रदय में उतार लेता ,
    शब्द जाल बुनता रहता ,
    वह स्वयं नहीं जानता ,
    जानना भी नहीं चाहता ,
    वह कहाँ खोया रहता है ,
    किस दुनिया में रहता है ,

    ekdam satik baat kahin koi banawat nahin.. waah maja aagaya is saadgi ke ehsaas se. Thanks.

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  6. kavi shabd ko paribhashit karna........sirf aapke bas me hi hai.............Asha di!!

    bahut pyari rachna...!!

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  7. एकांत में घंटों ,
    गुमसुम बैठा रहता है ,
    अपने में खोया रहता है ,
    एकाएक उठता है,
    लिखना प्रारम्भ करता है ,
    नयी कविता का ,
    सृजन करता है ,


    --बहुत उम्दा परिभाषित किया है. सुन्दर रचना.

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