17 नवंबर, 2010

मन की ऑंखें

मन ने सोचा खोली आँखें ,
देखा अपने आस पास ,
था कुछ विशिष्ट इन आँखों में ,
कल्पना ने उड़ान भारी
ली अनुमति इन आँखों से ,
दूर जाती एक पगडंडी तक ,
जो खो जाती घने जंगल में ,
हैं अनगिनत निशान उस पर ,
हैं दस्तावेज उन क़दमों के ,
जो सुबह शाम बनते मिटते ,
कहते कथा वहाँ रहने वालों की ,
नित नए निशान करते वर्णन ,
उस दिन हुई घटनाओं की |
बहुत निकट झुण्ड हिरणों का ,
ओर दर्शन बायसन समूह का ,
एकाएक सुन दहाड़ बाघ की ,
सारा जंगल गूँज उठा ,
पशु पक्षी कॉल दे दे कर ,
उपस्थिति उसकी दर्शाने लगे ,
जैसे ही वह गुज़र गया ,
शांत हुआ पूरा जंगल ,
शेष था कहीं-कहीं बहता पानी ,
ठंडी हवा और घना जंगल |
जाने अनजाने कितनी बातें,
सहेजी गईं कल्पना में ,
हालत कुछ ऐसी हुई ,
ह़र जगह वही दिखने लगा ,
जो देखा मन की आँखों ने ,
और सिमटने लगा ,
दृश्यों में, कृतियों में |
एक झाड़ी की दो शाखाएँ ,
पीछे उसके बड़ा पत्थर ,
हिरन सा ही दिखने लगा ,
पास पहुँच जब देखा ,
पाया केवल पेड़ और पत्थर |
सच्चाई सामने आई ,
तरस भी आया एक बार ,
मन की आँखों पर ,
कल्पना की उड़ान पर ,
फिर भी जो आनन्द मिला ,
भूल ना पाई आज तक |
हैं आखिर मन की आँखें ,
जो सोचती हैं वही देखती हैं ,
होता है ऐसा क्यूँ ?
यह तक नहीं समझ पाई ,
इस क्यूँ से परेशानी क्यूँ ,
जब मिलता भरपूर ,
आनंद मन की आँखों से |


आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. होता है ऐसा क्यूं ?
    यह तक नहीं समझ पाई ,
    इस क्यूं से परेशानी क्यूं ,
    जब मिलता भरपूर ,
    आनंद मन की आँखों से
    सुंदर अतिसुन्दर , कई अर्थों को अपने में समाये हुई रचना, बधाई

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  2. भ्रम यदि सुन्दर और आनंदवर्धक हों तो उन्हें बने रहने देना चाहिए ना ! आपको प्रसन्नता ही तो देते हैं और आपकी कल्पना को भी ताज़गी मिलती है ! सुन्दर रचना !

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  3. दूर जाती एक पगडंडी तक ,
    जो खो जाती घने जंगल में |
    हें अनगिनत निशान उस पर ,
    है दस्तावेज उन क़दमों की ,
    जो सुबह शाम बनते मिटते ,
    कहते कथा वहां रहने वालों की ...

    ---

    beautiful creation ! , revealing the facts of life.

    .

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  4. तरस भी आय ाइक बार मन की आंखों पर कल्पना मी उड़ान पर।
    सुन्दर अभिव्य्क्ति। ब्धाई।

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  5. "....एक झाडी की दो शाखाएं ,
    पीछे उसके बड़ा पत्थर ,
    हिरन सा ही दिखने लगा ,
    पास पहुच कर जब देखा ,
    पाया केवल पेड़ ओर पत्थर |....."

    कुछ लोग सिर्फ कल्पना की मृग मरीचिका में ही जीवन जीते हैं ऐसे लोगों को कटु वास्तविकताओं को समझने और सत्य को स्वीकार करने की प्रेरणा देती कविता.

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  6. फिर भी जो आनन्द मिला ,
    भूल ना पाई आज तक |
    हें आखिर मन की आंखें ,
    जो सोचती हें बही देखती हें ,
    होता है ऐसा क्यूं ?
    यह तक नहीं समझ पाई ,
    इस क्यूं से परेशानी क्यूं ,
    जब मिलता भरपूर ,
    आनंद मन की आँखों से |

    कभी कभी इंसान ख्वाब मे ही जीना चाहता है शायद इसीलिये जानते हुये भी भ्रम मे जीना चाहता है शायद आंतरिक सुख के लिये।

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  7. मन की आँखों से बहुत कुछ देखा जा सकता है ...अच्छी अभिव्यक्ति

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  8. ब्लॉग पर आकार प्रोत्साहित करने के लिए आभार |
    आशा

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  9. यह तक नहीं समझ पाई ,
    इस क्यूं से परेशानी क्यूं ,
    जब मिलता भरपूर ,
    आनंद मन की आँखों से |

    बहुत खूबसूरत आशा जी ... किना सुन्दर शब्द दिए हैं आपने इस कल्पना को ... वाह .. जवाब नहीं ...

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  10. man ki aankhon se hi hum kitni sudar kalpnaon ke sansaar ka bhraman kar pate hai -iska sudar varnan kiya hai aapne .aabhar

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