14 मार्च, 2011

कटु सत्य



यदि पहले से जानते
दुनिया कल्पना की ,
स्वप्नों की ,
होती है खोखली
है प्रेम डगर
काँटों से भरी ,
सोचते
दिमाग से
दिल लगाने से पहले |
कई मुखौटे लगाए
इसी चेहरे पर ,
उतारते गए उन्हें
कपड़ों की तरह
अपने सपने साकार
करने के लिये |
पहले था विश्वास ख़ुद पर
वह भी डगमगाने लगा
यथार्थ के सत्य
जान कर |
समझते थे खुद को
सर्व गुण संपन्न ,
वे गुण भी गुम हो गए
कठिन डगर पर चलके |
सम्हल भी ना पाए थे
सोच भी अस्पष्ट था
कि बढ़ती उम्र ने दी दस्तक
जीवन के दरवाजे पर |
सारी फितरत भूल गए
बस रह गए
कोल्हू का बैल बन कर
सारे सपने बिखर गए
प्रेम की डगर
पर चल कर |
चिंताएं घर की बाहर की
प्रति दिन सताती हैं
प्रेम काफूर हो गया है
कपूर की तरह |
बस ठोस धरातल
रह गया है
गाड़ी जिंदगी की
खींचने के लिए |

आशा



8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    इसी चेहरे पर ,
    उतारते गए उन्हें
    कपड़ों की तरह
    अपने सपने साकार
    करने के लिये |
    ......कटु सत्य प्रभावशाली प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  2. कोल्हू का बैल बन कर
    सारे सपने बिखर गए
    प्रेम की डगर
    पर चल कर |
    चिंताएं घर की बाहर की
    प्रति दिन सताती हैं
    प्रेम काफूर हो गया है
    कपूर की तरह |
    बस ठोस धरातल
    रह गया है
    गाड़ी जिंदगी की
    खींचने के लिए |

    हम जैसों का सत्य ..अपनी सी लगी यह रचना ..

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  3. सम्हल भी ना पाए थे
    सोच भी अस्पष्ट था
    कि बढ़ती उम्र ने दी दस्तक
    जीवन के दरवाजे पर |
    सारी फितरत भूल गए
    बस रह गए
    कोल्हू का बैल बन कर..

    यही जीवन का कटु सत्य है...बहुत संवेदनशीलता से उकेरा है आपने रचना में..बहुत सुन्दर

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  4. जीवन का कड़वा सत्य दर्शाती रचना |यही यथार्थ है बाकी सब मोह है |

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  5. बढ़िया रचना ! इसी काँटों भरी डगर का नाम जीवन है ! यहाँ स्वप्न और जागृति में तथा कल्पना और यथार्थ में ज़मीन आसमान का अंतर होता है ! सुन्दर रचना के लिये बधाई एवं होली की शुभकामनायें !

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  6. एक बेहतरीन रचना के लिए शुभकामनायें !!

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  7. बस ठोस धरातल
    रह गया है
    गाड़ी जिंदगी की
    खींचने के लिए |

    bahut umdaa !

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