
मन में दबी आग
जब भी धधकती है
बाहर निकलती है
थर्रा देती सारी कायनात |
मन ही मन जलता आया
सारा अवसाद छिपाया
सारी सीमा पार हों गयी
सहनशक्ति जबाब दे गयी |
विस्फोट हुआ ज्वाला निकली
धुंआ उठा चिंगारी उड़ीं
हाथ किसी ने नहीं बढाया
साथ भी नहीं निभाया |
समझा गया हूँ क्रोधित
इसी से आग उगल रहा
पर कारण कोइ न जान पाया
मन मेरा शांत न कर पाया |
बढ़ने लगी आक्रामकता
तब भयभीत हो राह बदली
बरबादी के कहर से
स्वयम् भी न बच पाया |
बढ़ी विकलता ,आह निकली
बहने लगी अश्रु धारा
पर शांत भाव आते ही
ज़मने लगी , बहना तक भूली |
फिर जीवन सामान्य हो गया
कुछ भी विघटित नहीं हुआ
है यह कैसी विडंबना
सवाल सहनशीलता पर उठा |
बार बार आग उगलना
फिर खुद ही शांत होना
कहीं यह संकेत तो नहीं
सब कुछ समाप्त होने का |
आशा
जब भी धधकती है
बाहर निकलती है
थर्रा देती सारी कायनात |
मन ही मन जलता आया
सारा अवसाद छिपाया
सारी सीमा पार हों गयी
सहनशक्ति जबाब दे गयी |
विस्फोट हुआ ज्वाला निकली
धुंआ उठा चिंगारी उड़ीं
हाथ किसी ने नहीं बढाया
साथ भी नहीं निभाया |
समझा गया हूँ क्रोधित
इसी से आग उगल रहा
पर कारण कोइ न जान पाया
मन मेरा शांत न कर पाया |
बढ़ने लगी आक्रामकता
तब भयभीत हो राह बदली
बरबादी के कहर से
स्वयम् भी न बच पाया |
बढ़ी विकलता ,आह निकली
बहने लगी अश्रु धारा
पर शांत भाव आते ही
ज़मने लगी , बहना तक भूली |
फिर जीवन सामान्य हो गया
कुछ भी विघटित नहीं हुआ
है यह कैसी विडंबना
सवाल सहनशीलता पर उठा |
बार बार आग उगलना
फिर खुद ही शांत होना
कहीं यह संकेत तो नहीं
सब कुछ समाप्त होने का |
आशा
मन की तड़पन ..और हलचल को महसूस किया ...उस प्यार के वेग को ..जो अधूरा रह गया ...मन का तूफ़ान ...मन के भीतर ...उफ़,
जवाब देंहटाएंफिर जीवन सामान्य हो गया
जवाब देंहटाएंकुछ भी विघटित नहीं हुआ
है यह कैसी विडंबना
सवाल सहनशीलता पर उठा |
हर पल यूँ ही खुद से लड़ना पड़ता है ... विचारणीय रचना
मनोभावों का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंजी नहीं यह संकेत है और अधिक सृजनशील होने का ! ज्वालामुखी का लावा जिस धरा पर जम जाता है वह और अधिक उर्वरा और समृद्ध हो जाती है ! उसी तरह इंसान भी और अधिक संवेदनशील हो जाता है और उसकी रचना में निखार आ जाता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द चयनित कविता ह्रिदय की वेद्ना मुखरित करती पन्क्तियां बधाई आशा जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण!
जवाब देंहटाएंअन्तर्मन विचारों से जब खेलता है तो ऐसी रचनाएँ प्रादुर्भाव पाती हैं।
जवाब देंहटाएंअंतर्मन के विचारों को सहज अभिव्यक्ति दी है आपने ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुनावट/सम्प्रेषण...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत बढ़िया...
सादर...
बेहद सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसाधना जी से सहमत्।
जवाब देंहटाएंgahan abhivaykti...
जवाब देंहटाएंआशा जी नमस्कार, सुन्दर इन दूरियो का कारण हमारे बीच का अहम भी है जो प्रेम पर भी भारी पड़ता है।
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