06 दिसंबर, 2011

मन भ्रमित मेरा

चंचल चितवन के सैनों से ,क्यूं वार किया तुमने |
तुम हो ही इतनी प्यारी सी ,मन मोह लिया तुमने ||

मृदु मुस्कान लिए अधरों पर ,यूँ समक्ष आ गईं |
सावन की घनघोर घटा सी ,अर्श में छाती गयी ||

नहीं सोच पाया मैं अभी तक ,है ऐसा क्या तुम में |
रहता हूँ खोया खोया सा ,स्वप्नों में भी तुम में ||

क्या तुम भी वही सोचती हो ,करती हो प्यार मुझे |
या है मन भ्रमित मेरा ही ,तुम छलती रहीं मुझे ||
आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं सोच पाया मैं आभी तक ,है ऐसा क्या तुम में |
    रहता हूँ खोया खोया सा ,स्वप्नों में भी तुम में ||

    वाह आंटी।

    सादर

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  2. क्या तुम भी वही सोचती हो ,करती हो प्यार मुझे |
    या है मन भ्रमित मेरा ही ,तुम छलती रहीं मुझे ||
    अंतिम पंक्तियाँ एक प्रश्न छोडती हैं , बधाई.........

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  3. प्यार के रंग से सराबोर बहुत हे खूबसूरत और उत्कृष्ट प्रविष्टि आभार...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  4. मादक थी मोहमयी थी ..
    मन बहलाने की क्रीडा ..
    अब ह्रदय हिला देती है ...
    वह मधुर प्रेम की पीड़ा ...
    यही पंक्तियाँ याद आ गयीं ..
    बहुत सुंदर लिखा है .....

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  5. प्रेम के रंग में रंगी मधुर रचना ! बहुत सुन्दर !

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति .... बधाईयाँ जी

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  7. प्रेम मिलने पर और नहीं मिलने पर
    लोग तो दोनों ही हालत में भ्रमित होते है ...!
    बहुत सुन्दर रचना !
    आभार !

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  8. चंचल चितवन के सैनों से ,क्यूं वार किया तुमने |
    तुम हो ही इतनी प्यारी सी ,मन मोह लिया तुमने
    aapne bhi man moh liya......

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  9. प्रेम की सुंदर अभिव्यत्ति मन के भावों छूती पन्तियाँ,...बहुत सुंदर रचना
    बधाई ...मेरे नए पोस्ट में स्वागत है

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