04 दिसंबर, 2011

नया अंदाज

हुए बेजार जिंदगी से इतने
हर शै पर पशेमा हुए
था न कोइ कंधा सर टिकाने को
जी भर के आंसू बहाने को |
हर बार ही धोखा खाया
बगावत ने सर उठाया
हमने भी सभी को बिसराया
हार कर भी जीना आया |
है दूरी अब बेजारी से
नफ़रत है बीते कल से
अब कोइ नहीं चाहिए
अपना हमराज बनाने को |
सूखा दरिया आंसुओं का
भय भी दुबक कर रह गया
है बिंदास जीवन अब
और नया अंदाज जीने का |
आशा


16 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति

    कृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.

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  2. जीवन का कटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....

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  3. नए अंदाज के साथ सुन्दर प्रस्तुति..मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार है..धन्यवाद ।

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  4. यही होना चाहिये ! इसी अंदाज़ से ज़िंदगी को जीना चाहिये ! बहुत बढ़िया और धारदार प्रस्तुति ! आनंद आ गया !

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  5. जो बीत गई सो बात गई... सुंदर प्रस्तुति

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  6. आपलोगों का धन्यवाद इस ब्लॉग पर आने के लिए |
    आशा

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  7. सूखा दरिया आंसुओं का
    भय भी दुबक कर रह गया
    है बिंदास जीवन अब
    और नया अंदाज जीने का |

    .kab tak anshu bahane se achha bindas jina...
    badiya aas jagati rachna

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  8. बहुत खूब अंदाज़ है इस तरह जीने का

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