28 जनवरी, 2012

स्वर नहीं मिलते

कुछ शब्दों को
स्वर नहीं मिलते
यदि भूले से मिल भी गए
कहीं पनाह नहीं पाते |
वे होते मुखर एकांत पा
पर होने लगते गुम
समक्ष सबके |
ऐसे शब्दों का लाभ क्या
हैं दूर जो वास्तविक धरा से
हर पल घुमड़ते मन के अंदर
पर साथ नहीं देते समय पर |
स्वप्नों में होते साकार
पर अभिव्यक्ति से कतराते
शब्द तो वही होते
पर रंग बदलते रहते
वे जिस रंग में रम जाते
वहीँ ठिठक कर रह जाते
स्वर कहीं गुम हो जाते |
आशा






















10 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द तो वही होते
    पर रंग बदलते रहते
    वे जिस रंग में रम जाते
    वहीँ ठिठक कर रह जाते
    स्वर कहीं गुम हो जाते |
    ......बिलकुल सही कहा आपने माँ बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
    आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!

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  2. स्वरों को मुखरित होने दें ..एकांत में ही सही ..सुन्दर रचना

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  3. सुंदर रचना।
    गहरे भाव।

    वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. स्वरों को पकड़ कर रखिये जो अभिव्यक्ति को अवरुद्ध ना होने दें ! जो अनकहा रह गया वह तो आप तक ही स्वीमित रह गया ना ! शब्दों को भी व्यापक फलक की आवश्यकता होती है !

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  5. शब्द भाव हैं ...शब्द भावनाएं हैं ...उमड़ने दो उसे ...आभार

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  6. जी बिलकुल कुछ भावो को शब्द नही मिलते है..........बहुत ही खुबसूरत
    और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  7. आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२८) मैं शामिल की गई है /आप आइये और अपने सन्देश देकर हमारा उत्साह बढाइये /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आभार /

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  8. शब्द तो वही होते
    पर रंग बदलते रहते
    वे जिस रंग में रम जाते
    वहीँ ठिठक कर रह जाते
    स्वर कहीं गुम हो जाते |

    कोमल भाव......

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