31 जनवरी, 2012

भटकाव

जपते माला गुरु बनाते
नीति धर्म की बातें करते
पर आत्मसात न कर पाते
सब से वंचित रह जाते |
संचित पूंजी भी चुक जाती
व्यर्थ के आडम्बरों में
बातें यूँही रह जातीं
पुस्तकों के पन्नों में |
है ज्ञान अधूरा ,ध्यान अधूरा
जीवन संग्राम अधूरा
फिर भी सचेत न हो पाते
इधर उधर भटकते रहते
कस्तूरी मृग से वन में
अस्थिर मन की चंचलता
चोला आधुनिकता का
अवधान केंद्रित नहीं रहता
रह जाते दूर सभी से
खाली हाथ विदा लेते
इस नश्वर संसार से |
आशा

















12 टिप्‍पणियां:

  1. आशा जी ...संसार का नियम है ...कि खाली आए थे और खाली ही जायंगे ...

    हां अपने विचार और कुछ बाते ऐसी है जो ..यही पीछे ..हमको छोड़ के जनि हैं ...जिस से बहुत तो नहीं ...पर कुछ लोगो की बातों में हम भी जिन्दा रहेगे

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut khoob
    asal gyaan ko chod har koi idhar udhar bhag raha hain

    जवाब देंहटाएं
  3. गहन चिंतन से भरपूर एक सार्थक रचना ! बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर रचना के लिए मेरे पास कोई सशब्द नहीं..बस मौन ही

    जवाब देंहटाएं
  5. आडंबरों के बारे में बताती सार्थक रचना ... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर भाव ...
    प्रभावित करती रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  7. खाली हाथ आये थे खाली हाथ जाना है ... गहन चिंतन... आभार

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: