वह देखती अनवरत
दूर उस पहाड़ी को
जो ख्वाव गाह रही उसकी
आज है वीरान
कोहरे की चादर में लिपटी
किसी उदास विरहनी सी
वहाँ खेलता बचपन
स्वप्नों में डूबा यौवन
सजता रूप
किसी के इन्तजार में
है अजीब सी रिक्तता
वहाँ के कण कण में
गहरी उदासी छाई है
उन लोगों में
भय दहशतगर्दों का
विचलित कर जाता
वे चौंक चौक जाते
आताताई हमलों से
कई बार धोखा खाया
पर प्रेम बांटना ना भूले
जो भी द्वारे आए
उसे ही प्रभु जान लेते
पहाड़ उसे बुला रहे
याद वहां की आते ही
वह खिचती जा रही
बंधी प्रीत की डोर में |
आशा
वह खिचती जा रही
जवाब देंहटाएंबंधी प्रीत की डोर में |
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने .. रचना बहुत अच्छी लगी
बेहतरीन लिखा है आंटी।
जवाब देंहटाएंसादर
पहाड़ों का आकर्षण होता ही इतना प्रबल है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव संयोजन से सजी बेहतरीन भावभिव्यक्ति ...http://aapki-pasand.blogspot.com/2012/02/blog-post_03.html
जवाब देंहटाएंआताताई हमलों से
जवाब देंहटाएंकई बार धोखा खाया
पर प्रेम बांटना ना भूले
जो भी द्वारे आए
उसे ही प्रभु जान लेते
बहुत सुन्दर भाव... सही है इन्होने सबको अपनाया है स्नेह दिया है... सादर
बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक घटनाओं से आहत मन की अत्यंत सुंदर झांकी सजाई है आपने.. धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद
हटाएंsundar rachna hai asha ji,aap ki rachnayen mujhe kafi prbhavit karti hai....
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए और मनोबल बढाने के लिए आभार |
हटाएंआशा
बहुत सुन्दर भाव संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना है ...
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपको अपने ब्लॉग पर पहली बार देख कर बहुत अच्छा लगा |ऐसा ही स्नेह बनाए रखें |
जवाब देंहटाएंआशा