03 फ़रवरी, 2012

पहाड़ उसे बुला रहे

अश्रुपूरित नयनों से
वह देखती अनवरत
दूर उस पहाड़ी को
जो ख्वाव गाह रही उसकी
आज है वीरान
कोहरे की चादर में लिपटी
किसी उदास विरहनी सी
वहाँ खेलता बचपन
स्वप्नों में डूबा यौवन
सजता रूप
किसी के इन्तजार में
है अजीब सी रिक्तता
वहाँ के कण कण में
गहरी उदासी छाई है
उन लोगों में
भय दहशतगर्दों का
विचलित कर जाता
वे चौंक चौक जाते
आताताई हमलों से
कई बार धोखा खाया
पर प्रेम बांटना ना भूले
जो भी द्वारे आए
उसे ही प्रभु जान लेते
पहाड़ उसे बुला रहे
याद वहां की आते ही
वह खिचती जा रही
बंधी प्रीत की डोर में |
आशा


























15 टिप्‍पणियां:

  1. वह खिचती जा रही
    बंधी प्रीत की डोर में |
    वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने .. रचना बहुत अच्छी लगी

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  2. पहाड़ों का आकर्षण होता ही इतना प्रबल है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  3. सुंदर भाव संयोजन से सजी बेहतरीन भावभिव्यक्ति ...http://aapki-pasand.blogspot.com/2012/02/blog-post_03.html

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  4. आताताई हमलों से
    कई बार धोखा खाया
    पर प्रेम बांटना ना भूले
    जो भी द्वारे आए
    उसे ही प्रभु जान लेते

    बहुत सुन्दर भाव... सही है इन्होने सबको अपनाया है स्नेह दिया है... सादर

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  5. समसामयिक घटनाओं से आहत मन की अत्यंत सुंदर झांकी सजाई है आपने.. धन्यवाद :)

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  6. sundar rachna hai asha ji,aap ki rachnayen mujhe kafi prbhavit karti hai....

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    उत्तर
    1. ब्लॉग पर आने के लिए और मनोबल बढाने के लिए आभार |
      आशा

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  7. बहुत सुन्दर भाव संयोजन
    बहुत बेहतरीन रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  8. आपको अपने ब्लॉग पर पहली बार देख कर बहुत अच्छा लगा |ऐसा ही स्नेह बनाए रखें |
    आशा

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