21 जनवरी, 2014

जब बुलडोजर चला


ताश के पत्तों सा
महल सपनों का ढहा
दिल छलनी हुआ
जब बुलडोजर चला |
एक ही चिंता हुई
जाने कहाँ जाएंगे
कैसे समय निकालेंगे
इस बेमौसम बरसात में |
कोई  मदद न काम आनी है
सारे आश्वासन बेमानी हैं
खुद को ही खोजना होगा
 आशियाना सिर  छिपाने को  |
बस एक ही 
दया प्रभु ने पाली
झोली रही न खाली
कर्मठ हूँ 
साहस रखता हूँ|
हल समस्या का 
 खोज सकता हूँ
इसी लिए दुःख नहीं पालता
अपनी लड़ाई खुद लड़ता हूँ |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन...प्रेरक रचना...
    http://mauryareena.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया ! जीवन में हर संघर्ष का सामना करने के लिये इसी आत्मविश्वास एवँ हौसले की आवश्यकता होती है ! सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. आ० प्रेरित करती शानदार कृति , धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

    जवाब देंहटाएं
  4. तेज लिए .. अपनी लढाई खुद लड़ने से ताकत मिलती है ... प्रेरित करती रचना ...

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: