20 अप्रैल, 2014

नया नया बना मतदाता


नया नया मतदाता बना 
था उत्साह
 प्रथम बार 
मतदान का|
इतने दिन बीत गए
 सुनते सुनते|
प्रजातंत्र में जीते हो
मताधिकार का प्रयोग करो
इसे वोट देना है
 कि उसे वोट देना है
स्वविवेक का प्रयोग करो|
प्रत्याशी हो ऐसा
जो कुछ कर पाए
देश हित हो सर्वोपरी
कठपुतली ना साबित हो|
जितने लोग उतने विचार
अलग उनकी विचार धारा
किसे चुने रोज सुनते
मन स्थिर ना हो पाता|
जाने क्यूं हतौत्साहित हुआ
पैर भारी होने लगे
कदम बढ़ना नहीं चाहते
लगता है मैं जागरूप नहीं|
अभी तक छबि धुधली सी है
किसे चुनूं मतदान करूँ
हूँ एक नया मतदाता 
क्या करूँ  समझ न पाता|
आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-04-2014) को "गल्तियों से आपके पाठक रूठ जायेंगे" (चर्चा मंच-1589) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. कन्फ्यूज़ होने की क्या ज़रूरत है ! उसे वोट करे जिसे वह जिताना चाहता है और जो उसके स्वप्नों के भारत को साकार करने का माद्दा रखता है !

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    1. हाँ ! बिलकुल सपने में आए खजाने के ठिकाने की तरह.....

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. टिप्पणी के लिए धन्यवाद |लगरहा है आप भी पहली बार मतदान करेंगी |

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  4. मतदाता ही है भारत भाग्य विधाता। जरूरी है कि चुन कर आयें सही लोग।

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  5. धन्यवाद आशा जी टिप्पणी के लिए |

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