17 अप्रैल, 2014

पैनी धार



है बेवाक विचारों की परिचायक
बिकाऊ नहीं
ना ही लालायित
यशोगान के लिए |
है विशिष्ट सब से जुदा
अदभुद शक्ति छिपी इस में
भावाभीव्यक्ति के लिए |
किसी का प्रभाव न होता इस पर
ना बिकती धन के लिए
कोई  प्रलोभन झुका न पाता
उन्मुक्त भाव लेखन में होता |
पारदर्शिता की पक्षधर
यही है  लेखनी धार जिसकी पैनी
जो धार पर चढ़ जाता
उसका बुरा हाल होता |
जो सत्य से दूर भागता
इससे बच न पाता
इतना आहत होता
सलीब पर खुद चढ़ जाता |
यही बातें इसकी
मुझे इसका कायल बनातीं
मेरी लेखनी की धार
 अधिक तेज होती जाती |
आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (18-04-2014) को "क्या पता था अदब को ही खाओगे" (चर्चा मंच-1586) में अद्यतन लिंक पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. टिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
      सूचना के लिए आभार

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  2. कलम के सिपाही अगर सो गये
    तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे...

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  3. बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ...

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    उत्तर
    1. इसी प्रकार आप ब्लॉग पर आती रहें आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद संध्या जी |

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  4. वाह ! क्या बात है ! आपकी लेखनी की धार इसी तरह पैनी बनी रहे और सत्यम्, शिवम् एवं सुंदरम् का सृजन करती रहे यही शुभकामना है ! बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति !

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