एक शब्द अर्थ
अनेक
सब के विश्लेषण
सटीक
जब सोचा समझा उपयोग
किया
कितने ही पीछे
छूट गए |
शब्द कोष में
खोजा उनको
एक कल्पना की मैंने
नया साहित्य सृजन
करने की
उन्हें उचित
स्थान देने की |
बड़े साहित्यकारों
की तरह
कुछ का उपयोग
किया भी
पर खरा न उतर
पाया
उनको सम्मान देने
में |
वही शब्द भाषाएँ
अनेक
सब में अर्थ अलग
अलग
कुछ भी तो समान
नहीं
खोता गया शब्दों
के समुन्दर में |
पर जो चाहा वैसी
रचना
ना कल बनी न आज
बन पाई
मैं उलझा रहा नए
पुराने
शब्दो के जाल बांधने में |
अभी भी बेकली छाई
है
मन चाहता तराशना
शब्दों के समूह
को
नया रूप देने को
|
आशा
-सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 17/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (16-04-2014) को गिरिडीह लोकसभा में रविकर पीठासीन पदाधिकारी-चर्चा मंच 1584 में "अद्यतन लिंक" पर भी है।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |सूचना हेतु धन्यवाद सर |
हटाएंयह एक रचनाकार की पीड़ा है जिसे सृजन के समय वह झेलता है ! जितनी गहराई में वह पहुँचेगा उतने ही अनमोल मोती झोली में भर लाएगा ! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंयह सही है कि शब्दों को साधना कोई आसान काम नहीं है - हर भंगिमा ,हर अर्थ हर जगह धारण कर लेता है .
जवाब देंहटाएं(सुधार)
जवाब देंहटाएं'हर जगह भिन्न रूप धारण कर लेता है .'
धन्यवाद प्रतिभा जी |
हटाएंशब्द नए अर्थों में चले आते हैं ... रचना में घुल मिल जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंयही है कविताई बे -कली ,बे -चैनी ,पोएटिक एंग्जाइटी
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर |
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