11 जून, 2015

इतने दिन तक कहाँ रही

इतने दिन तक कहाँ रहीं 
याद न किया मुझे 
दौड़ कर आ जा तुझे
 अपनी बाहों में झुलाऊँ|
अपनी पलकों में छिपालूं 
तेरे सारे गम चुन लूं 
तुझे खरोंच न आने दूं 
सारी विपदा खुद वर लूं  |
है मेरी अमूल्य निधि
बड़े जतन से तुझे सहेजूँ 
तेरी एक मुस्कान देख 
मन में  स्वप्न सजाऊँ|
आ मेरी गोदी में आ जा 
आँचल में तुझे छिपाऊँ
 किसी की नजर न लगे
डिठोना तुझे लगाऊँ |
है मन मोहिनी छबि तेरी 
मैं तेरी बलाएं ले लूं
तुझे देख हर पल जी लूं 
सब धन मैं पा जाऊं |
आशा





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: