07 जनवरी, 2017

समा उदासी का



 ऎसी क्या हो गई खता
नज़रों से उसको गिरा दिया
सम्हलने का अवसर न दिया
आइना उसे दिखा दिया
यदि एक मौक़ा भी दिया होता
मन में गिला न रह जाता
शिकवा शिकायत तो न करते
मलहम घाव पर होता
रुसवाइयों का अर्थ निकलता
तन्हाई का आलम न होता
दौनों एक साथ होते
उदासी का समा न होता |
आशा

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