है
यही
हमारा
हमदम
गीत गा रहा
उसके नाम का
कहना नहीं है यह
दीपक स्नेह बाती यही
वे
यही
देखते
रह गए
दुलार स्नेह
उसके मन का
पर कह न पाए
यह किसको कहते
करके बड़ा मनुहार
यह
जमीन
अपनी ही
नाम भारत
कितना सफल
है प्रजातंत्र यहाँ
सफल रहा कितना
यही आकलन होना है
आशा
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (9-09-2021 ) को 'जल-जंगल से ही जीवन है' (चर्चा अंक 4182) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुप्रभात
हटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
वाह ! सुन्दर वर्ण पिरेमिड !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
वर्ण पिरामिड की सुंदर आभा बिखेरती रचना ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी टिप्पणी के लिए |