07 सितंबर, 2021

दो नन्हीं महमान आई घर में


 मेरे घर आईं दो नन्हीं महमान 
 दूध सी धवल रुई सी कोमल 

बहुत ही  नाजुक  टेडीवीअर सी  

श्वेत  फर  की चादर ओढ़े दीखतीं  |

आखों में गहराई झील सी

 जिनका  रंग नीला आसमान सा 

मन प्रसन्न हो जाता 

जी चाहता देखती रहूँ उन्हें |

 उछल कर चलते दोड़ते

म्याऊं म्याऊँ करते पंजे मारते 

हैं इतनी मीठी स्वर लहरी  

मानो  शिक्षा मिली है उन्हें जन्म से  

धीरे बोलो अपने  स्वर को पहले तोलो 

रहती  चहल पहल पूरे धर में  

जैसे आई बहार हो   फूलों  की बगियाँ में 

अगले कमरे में अपना अड्डा बना लिया है 

सोफे पर  आजाती हैं  कूद कर

  थकते ही   पैर तान कर सो जाती हैं |

आशा 



8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-09-2021) को चर्चा मंच      "भौंहें वक्र-कमान न कर"     (चर्चा अंक-4181)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. वाह ! बहुत प्यारी हैं दोनों ! सुन्दर रचना !

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  3. उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार सहित धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  4. उत्तर
    1. सुप्रभात
      उषा किरण जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |

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