ओ चूहे तुम कब जाओगे
क्यूँ सताया है सारे
घर को
कितना नुक्सान किया
है तुमने
यह तक न सोचा कभी |
इतने ऊपर चढ़े कैसे
पांच मंजिल तक आए
क्या नया कूलर ही
मिला था
तुम्हें कर्तन के लिए |
हमने तो नहीं छेड़ा
तुमको
कोई नुक्सान न पहुंचाया
फिर भी तुमने दया न
बरती
है यह कैसी लीला तुम्हारी
|
तुम पूजे जाते गणपति के संग
यही सोच रहा मन में
हो गजानन की सवारी
क्यों सताया
जाए तुम्हें |
लिहाज तुमने न किया तनिक भी
बहुत यत्न किये फिर
भी
न जाना था न गए तुम आज तक
इतना नुकसान कैसे सहूँ |
कोई तरकीब तो बता
देते
एक छेद नए कूलर में
दूसरा मेरी जेब के अन्दर
कैसे सहन करूं यह कष्ट
जता जाते |
अब रहेगा तुमसे न
कोई प्रेम
न दया होगी तुम पर ज़रा
भी
अपनी सीमा तुमने
तोड़ी है
कोई अपेक्षा न
रखना मुझ से |
जब तक न विदा लोगे घर से
संतुष्टि मेरे मन को न होगी
यह बात मन में अवश्य
आयी है
जीवों पर दया करो सिद्धांत ने यहीं मात खाई है |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanks for the information of the post
जवाब देंहटाएंजीवों पर दया करो सिद्धांत ने यहीं मात खाई है |
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक ...जब ये जीव नुकसान पहुँचाते हैं तो हम दया भी भूल जाते हैं।
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! अनूठा विषय अद्भुत रचना ! अभी इन्हें नाराज़ करना ठीक नहीं ! गणपति बप्पा कैसे आयेंगे घर में जो इनका अपमान हुआ !
जवाब देंहटाएंसुप्रभाय
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |