08 सितंबर, 2021

वर्ण पिरामिड

 

            


                       है

     यही

    हमारा

   हमदम

    गीत गा रहा

    उसके नाम का

   कहना नहीं है यह

      दीपक स्नेह  बाती यही  

      


      वे 

       यही 

      देखते

     रह गए 

      दुलार स्नेह  

    उसके मन का

    पर कह न पाए

   यह किसको कहते

   करके बड़ा मनुहार


      है 

            यह   

    जमीन

   अपनी ही

 नाम भारत

  कितना सफल

 है प्रजातंत्र यहाँ 

सफल  रहा   कितना

 यही आकलन होना है  

आशा 


 

  

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (9-09-2021 ) को 'जल-जंगल से ही जीवन है' (चर्चा अंक 4182) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. सुप्रभात
      आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  2. वाह ! सुन्दर वर्ण पिरेमिड !

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  4. वर्ण पिरामिड की सुंदर आभा बिखेरती रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद जिज्ञासा जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं

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