19 दिसंबर, 2009

त्यौहार समभाव

राखी, ईद, दिवाली, होली, बैसाखी और ओनम ,
साथ मना कर रंग जमायें, खुशियों से आखें हों नम |
आओ हिलमिल साथ मनायें पोंगल और बड़ा दिन ,
हर त्यौहार हमारा अपना ,
हम अधूरे इन बिन |
सूना-सूना जीवन होगा और ज़िन्दगी बेरंग ,
झूठा मुखौटा धर्म का न होगा अनावृत इन बिन |
अनेकता में एकता का रहा यही इतिहास ,
राष्ट्रीय पर्व यदि ना होते ना होता विश्वास |
आस्थाएँ टूट जातीं व होता हमारा ह्रास ,
इसीलिए सब साथ मनायें ये सारे त्यौहार |
सारे पर्व भरे जीवन में एक नया उत्साह ,
अनेकता में एकता का बना रहे इतिहास |
नया नहीं कुछ करना है जीवन मे रंग भरना है ,
नित नये त्यौहार मनायें खुश हो सब संसार|
सब में समभाव ज़रूरी है ,
नहीं कोई उन्माद ज़रूरी है ,
सब में सदभाव ज़रूरी है ,
यही है आज की माँग ,
हम सब साथ मनायें ये सारे त्यौहार |

आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. धार्मिक और सांस्कृतिक समभाव का यह संदेश यदि समाज में प्रसारित हो जाये तो नफरत की दीवारें अपने आप गिर जायेंगी । बहुत सुन्दर भाव हैं कविता में । बधाई !

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  2. बहुत सुन्दर सार्थक रचना...
    आपको दीप पर्व की सपरिवार सादर शुभकामनाएं

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  3. धन्यवाद संजय मिश्रा जी टिप्पणी के लिए |

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