29 अप्रैल, 2010

ख़ुद ही कविता बन जाओगी

मैंने देखा जब से तुम को ,
कुछ लिखने का मन करता है ,
तुम सामने बैठी रहो ,
एक कविता बनती जायेगी ,
सुंदरता का गहरा रंग ,
कविता में समाता जायेगा ,
सौंदर्य बोध जागृत होगा ,
मन में घर करता जायेगा ,
सौंदर्य के सभी आयाम ,
कविता में आते जायेंगे ,
कविता बढ़ती जायेगी ,
कलम न रुकने पायेगी ,
ऐसा लगता है मुझ को ,
मैं अपनी सुधबुध खो बैठूँगा ,
अधिक समय यदि तुम ठहरीं ,
खुद ही कविता बन जाओगी |


आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. बहुत सुन्दर रचना ...अच्छे भाव लिए हुए .....बधाई स्वीकारे

    http://athaah.blogspot.com/

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  3. अधिक समय यदि तुम ठहरीं ,
    खुद ही कविता बन जाओगी |


    bahtrin bahut khub

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  4. Very beautiful poem. You have excelled all the older poems by this excellent composition. Bravo!

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