कुछ लोग ऐसे भी होते हैं ,
जो कभी बड़े नहीं होते ,
मन की कुंठाओं को ढोते-ढोते ,
पार किये उम्र के कितने पड़ाव ,
पर बीच में कहीं ठिठक गये ,
मन में कई अवसाद लिये ,
बड़े कहलाने की चाहत
रखते हैं ,
पर संयत व्यवहार नहीं करते ,
कुंठाओं से नहीं उबर पाते ,
निंदा रस का स्वाद आत्मसात कर लेते हैं ,
पर निंदा का कोई अवसर ,
नहीं हाथ से जाने देते ,
हीन भावना के परिचायक ,
सब को तुच्छ समझते हैं ,
दुनियादारी से दूर बहुत ,
खुद को बहुत समझते हैं ,
दूरी सबसे रखते हैं ,
अहम भाव से भरे हुए ,
संकीर्ण मानसिकता के
पुरोधा होते हैं |
आशा
Very good....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य कह रही हैं आप ! वाकई में कुछ लोग ऐसे ही होते हैं जो इसी मानसिकता से ग्रस्त होते हैं और समय समय पर जीवन में आपसे टकराते रहते हैं ! सबसे कष्टप्रद बात यह होती है कि ये सुधरने के लिए भी तैयार नहीं होते क्योंकि ये खुद को कभी गलत समझते ही नहीं ! एक सुन्दर और सार्थक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंbahut sundar...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबढिया रचना ....
जवाब देंहटाएंबेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
जवाब देंहटाएंवाकई कुछ लोग ऐसे होते है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना