26 मई, 2010

उतार चढ़ाव जीवन के

जब कभी याद आतीं हैं वे बातें पुरानी ,
जो शायद तुम्हारे स्मृति पटल से ,
तो विलुप्त हो गयीं कहीं खो गईं ,
पर मेरी आँखें नम कर गयीं ,
कभी तुम दूर हुआ करते थे ,
मुझे अपनी ओर आकर्षित करते थे ,
घंटों इंतज़ार में कटते थे ,
फिर भी जब हम मिलते थे ,
दोराहे पर खड़े रहते थे |
सदा अनबन ही रहती थी ,
सारी बातें अनकही रहतीं थीं ,
पहले हम कहाँ गलत थे ,
यह भी नहीं सोच पाते थे ,
हर बात आज याद आती है ,
मन को बोझिल कर जाती है |
प्यार का सैलाब उमड़ता ,
तब भी सोच यही रहता ,
पहले पहल कौन करे ,
मन की बात खुद क्यूँ कहे |
जो नयनों की भाषा न समझ पाये ,
दिल तक कैसे पहुँच पाये ,
मैंने लाख जताना चाहा ,
इशारों में कुछ कहना चाहा |
पर तुम मुझे न समझ पाये ,
मुझे पहचान नहीं पाये ,
तुम्हें सदा शिकायत ही रही ,
मैनें तुम्हें कभी प्यार न दिया ,
केवल सतही व्यवहार किया ,
मन की बात समझने का ,
नयनों की भाषा पढ़ने का ,
जज्बा सबमें नहीं होता ,
शायद उनमें से एक तुम थे |
मैनें लब कभी खोले नहीं ,
तुम मुझे रूखा समझ बैठे ,
तुमने झुकना नहीं जाना ,
अपने आप को नहीं पहचाना ,
तुम रूठे-रूठे रहने लगे ,
मुझसे दूर रहने लगे |
तुम्हें मनाना कठिन हो गया ,
मेरा अभिमान गुम होगया ,
जब भी तुम्हें मनाना चाहा ,
निराशा ही मेरे हाथ आई ,
आशावान न हो पाई ,
जब उम्र बढ़ी खुद को बदला ,
तुम में भी परिवर्तन आया ,
समय ने शायद यही सिखाया ,
हम मन की बातें समझने लगे ,
जीवन में रंग भरने लगे ,
एक दूजे को जब समझा ,
हमसाया हमसफर हो गये ,
मन से दोनों एक हो गये |


आशा

3 टिप्‍पणियां:

Your reply here: