चिंकी पिंकी लो यह पर्चा ,
जल्दी से सौदा ले आओ ,
शायद तुमको पता नहीं ,
कल बाजार बंद है |
सुनो ज़रा अपने पापा को भी ,
मोबाइल तुम कर देना ,
आज जरा जल्दी आ जाएं ,
कल की भी अर्जी दे आएं ,
कल जाना न हो पाएगा ,
गाड़ी के पहिये थम जाएंगे ,
कल तो भारत बंद है |
एक थाली भी चुनना है ,
मंहगाई का विरोध करना है ,
पर टूटी थाली ही चुनना ,
नई नहीं कोइ चुनना |
बजा बजा कर थाली को
तो तोड़ा जा सकता है ,
पर कमर तोड़ मंहगाई का ,
क्या कोइ हल निकल सकता है ?
हर बार बंद होते हैं ,
वे सफल भी होते है ,
हर बार यही दावा होता है ,
पर असर उल्टा होता है,
मंहगाई और बढ़ती जाती है |
इस बार न जाने क्या होगा ,
पर दिन भर के रुके कामों का,
जो भी हर्जाना होगा ,
उसकी भरपाई कौन करेगा ?
जब भी ऐसे बंद होते है ,
मंहगाई और बढा जाते है ,
आम आदमी ही पिसता है ,
पर वह यह नहीं समझता है |
आशा
जब भी ऐसे बंद होते है ,
जवाब देंहटाएंमंहगाई और बढा जाते है ,
आम आदमी ही पिसता है ,
पर वह यह नहीं समझता है |
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बहुत ही सटीक लेखन!
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शिक्षाप्रद रचना!
जब भी ऐसे बंद होते है ,
जवाब देंहटाएंमंहगाई और बढा जाते है ,
आम आदमी ही पिसता है ,
पर वह यह नहीं समझता है |
सही बात
सुंदर कविता!
जवाब देंहटाएंबहुत सु्न्दर-बढ़िया कविता.
जवाब देंहटाएंऐसे बंद, धरना, प्रदर्शन, जुलूस, रैली का आयोजन कुछ नेता सिर्फ अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए करवाते हैं जिसमें जनता को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है ! जनता की चिंता सच में नेताओं को होता तो क्या कोई भी बंद कारगर नहीं होता ! एक कटु सत्य को उजागर करती सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंसमसामयिक अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंshandaar hai
जवाब देंहटाएंइस पर पहले भी टिप्पणी कर चुकी हूँ लेकिन सब गायब हो गयीं ! मेरे ब्लॉग का भी यही हाल है ! वर्तमान राजनैतिक परिवेश पर अच्छी रचना है ! बंद, धरना, प्रदर्शन सब चंद स्वार्थी नेताओं के स्वार्थ सिद्धी के साधन हैं जिनके लिए वे भोली जनता का इस्तेमाल हथियार की तरह करते हैं और बाद में भूले से भी उनकी सुध नहीं लेते !
जवाब देंहटाएंकटु सत्य को उजागर करती रचना
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