07 अगस्त, 2010

सलाखों के पीछे से ,

जेल की कोठरी में
सलाखों के पीछे से
सींकचों को थामे
सूनी सूनी आँखों से
वह ताक रहा था कहीं शून्य में
था उदास थका हुआ सा
झाँक रहा था अपने मन में
बार बार वह दृश्य भयावह
उसके समक्ष आ जाता था
सिहरन सी होती थी मन में
मन को कचोटती थीं बातें
एक बड़ी भूल की थी उसने
जो साथ दिया ऐसे लोगों का
वे तो बच कर निकल गए
ह्त्या के आरोप में
उसे फंसा कर चले गए
वह तो केवल वहाँ खड़ा था
बीच बचाव कर रहा था
फिर क्यूँ किसी का साथ पा न सका
बाहर जेल के आ न सका
पत्नी भी भयभीत बहुत थी
हिचकी भर भर रोती थी
बच्चे बाहर जा नहीँ सकते
क्यूँ कि वे कहलाते हत्यारे के बच्चे 
जाने कब तक केस चलेगा
क्या ईश्वर भी रक्षा न करेगा
अब तो घुट घुट कर मरना है
अन्य कैदियों की हरकतों से
रोज ही दो चार होना है
कुछ कैदी शांत रहते हैं
पर कुछ असयंत व्यवहार करते हैं
जब भी कोर्ट जाना पड़ता है
नफरत से लोग देखते हैं
सब देख बहुत बैचेनी होती है
वकीलों के चक्कर काट काट
सर से छत भी छिन गई है
अब पत्नि और बच्चे रहते हें
एक किराए की झोंपड़ी में
समाज सेवा का भूत
उतर गया है अब सर से
एक ही बात याद आती है
ना हो साथ ऐसे लोगों का
जो समाज सेवा का दम तो भरते हैं
पर मन में कपट रखते हैं
अपना मतलब हल करने के लिए
चाहे जिसे फँसा सकते हैं
किसी भी हद तक जा सकते हैं |
आशा







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9 टिप्‍पणियां:

  1. sach me aapne sewa bhaw ka bhut utar diya..........:)

    lekin aisa hota hai, apne sahi likha.......!! ek achchhi aur yaadgaar rachna...

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  2. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. जो समाज सेवा का दम तो भरते हैं ,
    पर मन में कपट रखते हैं ,
    अपना मतलब हल् करने के लिए ,
    चाहे जिसे फंसा सकते हैं ,
    किसी भी हद तक जा सकते हैं |
    --
    जी हाँ!
    ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है!
    --

    इस रचना की पहली पंक्ति में कोठरी का "कोठारी" लिख गया है! शायद टंकण की भूल होगी! कृपया सुधार कर लीजिएगा!

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  5. बहुत सुंदर शब्दों से एक जीवन की कहानी को ढाल दिया है कविता में.चलचित्र सा घूम गया आँखों के सामने.

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  6. एक घटना को काव्यरूप में ढाला है.....बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  7. आपके विषयों की विविधता सदैव विमुग्ध करती है ! समाज में व्याप्त विकृत मानसिकता का सुन्दर चित्रण किया है आपने ! बधाई !

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  8. ना हो साथ ऐसे लोगों का ,
    जो समाज सेवा का दम तो भरते हैं ,
    पर मन में कपट रखते हैं ,
    अपना मतलब हल करने के लिए ,
    चाहे जिसे फँसा सकते हैं ,
    किसी भी हद तक जा सकते हैं |

    बहुत सुंदर प्रस्‍तुतिकरण !!

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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