है नई जगह अनजाने लोग ,
फिर भी अपने से लगते हैं ,
हैं भिन्न भिन्न जीवन शैली ,
भाषा भी हैं अलग अलग ,
पर सब समझा जा सकता है ,
उनकी आत्मीयता और स्नेह ,
गति अवरोध दूर करते हैं ,
आसपास नए चेहरे ,
पर गहराई उनके स्नेह में,
उस ओर आकर्षित करती है,
हैं वे सब भारतवासी ,
साहचर्य भाव रखते हैं ,
भेद भाव से दूर बहुत ,
सब से प्रेम रखते हैं ,
अनेकता में एकता की ,
झलक यदि देखना है ,
तो आओ इस देश में ,
इतना प्यार तुम्हें मिलेगा ,
डूब जाओगे अपनेपन में ,
गर्व करोगे अतिथि हो कर ,
और जब बापिस जाओगे ,
जल्दी फिर लौटना चाहोगे |
आशा
सारगर्भित रचना बधाई
जवाब देंहटाएंअनेकता में एकता की ,
जवाब देंहटाएंझलक यदि देखना है ,
तो आओ इस देश में ,...
आजकल ऐसे देश को देखने के लिए तरसने लगे हैं हम लोग ...!
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंbahoot sunder abhivayakti
जवाब देंहटाएंDeshprem kee bhawana se abhibhut rachna ke liya dhayavaad..
जवाब देंहटाएंआशा जी बहुत अच्छी पोस्ट लेकिन कल एक पोस्ट पढ़ी जिससे दिल कहता है की ये अतिथि ना ही आये तो अच्छा है...लीजिए आपको लिंक देती हूँ...
जवाब देंहटाएंhttp://taarkeshwargiri.blogspot.com/2010/08/blog-post_27.html
अच्छी प्रस्तुति.
काश सचमुच ऐसा होता ! २६-११ के मुंबई हादसे में जो मारे गए वो हमारे अतिथि ही थे ! किन्तु सत्य कितना भी कटु क्यों न हो हम आशावान होकर सुन्दर, स्वस्थ और मधुर भविष्य की लालसा तो कर ही सकते हैं ! सकारात्मकता कि ओर यह हमारा पहला कदम होगा ! अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंहिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
बहुत सुन्दर| अतिथि देवो भवः| भारत देश महान|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !
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