28 अगस्त, 2010

एक झलक

है नई जगह अनजाने लोग ,
फिर भी अपने से लगते हैं ,
हैं भिन्न भिन्न जीवन शैली ,
भाषा भी हैं अलग अलग ,
पर सब समझा जा सकता है ,
उनकी आत्मीयता और स्नेह ,
गति अवरोध दूर करते हैं ,
आसपास नए चेहरे ,
पर गहराई उनके स्नेह में,
उस ओर आकर्षित करती है,
हैं वे सब भारतवासी ,
साहचर्य भाव रखते हैं ,
भेद भाव से दूर बहुत ,
सब से प्रेम रखते हैं ,
अनेकता में एकता की ,
झलक यदि देखना है ,
तो आओ इस देश में ,
इतना प्यार तुम्हें मिलेगा ,
डूब जाओगे अपनेपन में ,
गर्व करोगे अतिथि हो कर ,
और जब बापिस जाओगे ,
जल्दी फिर लौटना चाहोगे |
आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. अनेकता में एकता की ,
    झलक यदि देखना है ,
    तो आओ इस देश में ,...

    आजकल ऐसे देश को देखने के लिए तरसने लगे हैं हम लोग ...!

    जवाब देंहटाएं
  2. आशा जी बहुत अच्छी पोस्ट लेकिन कल एक पोस्ट पढ़ी जिससे दिल कहता है की ये अतिथि ना ही आये तो अच्छा है...लीजिए आपको लिंक देती हूँ...

    http://taarkeshwargiri.blogspot.com/2010/08/blog-post_27.html

    अच्छी प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  3. काश सचमुच ऐसा होता ! २६-११ के मुंबई हादसे में जो मारे गए वो हमारे अतिथि ही थे ! किन्तु सत्य कितना भी कटु क्यों न हो हम आशावान होकर सुन्दर, स्वस्थ और मधुर भविष्य की लालसा तो कर ही सकते हैं ! सकारात्मकता कि ओर यह हमारा पहला कदम होगा ! अच्छी रचना !

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर| अतिथि देवो भवः| भारत देश महान|

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: