प्रतिस्पर्धा के इस युग में ,
सभी व्यस्त अपने अपने में
जब कोई कठिन समस्या हो
या सहायता की आवश्यकता
देख कर भी अनदेखा कर देते है
उससे किनारा के लेते हैं |
समस्या में ना उलझ कर
बच कर निकल आने पर
बहुत प्रसन्न हो जाते हैं
निजी स्वार्थ में लिप्त हो
आत्म केंद्रित हो जाते हैं
समाज से भी कटते जाते
यदि ऐसा ही चलता रहा
आने वाले समय में
यह दुःख का कारण होगा
जब खुद पर मुसीबत आएगी
तब कोई साथ नहीं देगा
सहायता के लिए गुहार करोगे
आसपास कोई ना होगा
हर व्यक्ति मुंह मोड लेगा
समाज भी आइना दिखा देगा |
आशा
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
आज के युग की व्यक्तिवादी मानसिकता पर अच्छी चोट की है ! गहन और ईमानदार प्रस्तुति ! बधाई !
जवाब देंहटाएंआज की स्वार्थी दुनिया पर सटीक कहा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंहिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
विषय चयन बहुत ही सुंदर लगा. आज समाज जिस दिशा में जा रहा है उसकी परिणित ऐसे ही होने वाली है. आशा जी सुंदर मुद्दे पर सुंदर और सामईक कविता
जवाब देंहटाएंswarthi hote samay mein kavi ki drishti ne jaise aane wali vikat'ta ko dekh liya hai!
जवाब देंहटाएंआने वाले समय में ,
यह दुःख का कारण होगा ,
जब खुद पर मुसीबत आएगी ,
तब कोई साथ नहीं देगा
sundar kavita ... aise samay mein apni manavta bachaye rakhne ki or ingit karti hui si!
यदि ऐसा ही चलता रहा ,
जवाब देंहटाएंआने वाले समय में ,
यह दुःख का कारण होगा ,
जब खुद पर मुसीबत आएगी ,
तब कोई साथ नहीं देगा ,...
समाज को आईना दिखा रही है आपकी पोस्ट ....
ये सच है आज के स्वार्थपरस्त ज़माने का ....
एकदम सटीक रचना आज के सामाजिक परिवेश पर.
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