हूं एक प्रवासी ,
आया हूं बहुत दूर से ,
साथियों को साथ ले ,
भोजन की तलाश में ,
अपना देश छोड़ आया ,
मौसम था विपरीत वहां ,
यहाँ अभी मौसम अच्छा है ,
लगता है अनुकूल हमें ,
भोजन भी मिल ही जाता है ,
कभी कम तो कभी अधिक ,
कम में भी गुजारा हो जाता है ,
होता है शांति का अनुभव ,
खोजते भोजन कभी ,
तो कभी प्रसन्न होते चहकते ,
दिन यूँ ही बीत जाता है ,
होती है थकान इतनी ,
रात्रि कहां बीत जाती है ,
पता ही नहीं चलता ,
विश्रान्ति के बाद ,
भोर होते ही चल देते हैं ,
होता जीवन क्रम पहले सा ,
आज न जाने कैसे मैं छूट गया,
रह गया बहुत पीछे ,
बाकी सब आगे निकल गए ,
अकेले रहना है मुश्किल ,
डर भी बहुत लगता है ,
ढूँढ रहा हूं साथियों को
सब जाने कहाँ चले गए ,
खोज रहा हूं ऐसा साथी,
जिसने देखा हो देश मेरा ,
वह मेरा साथ निभाए ,
जब भी मैं बापिस जाऊं ,
साथ मेरे ही वह जाए ,
जैसे ही ऋतु में परिवर्तन होगा ,
रहना वहां कठिन ना होगा ,
याद आ रही है मुझको ,
अब अपने देश की ,
जहां जन्मा और बड़ा हुआ ,
पला बढा परवान चढ़ा
मन के हर कौने में बसा है ,
अपना देश अपना होता है ,
हो आवश्यकता ,
या भोजन की तलाश ,
चाहे जहां भी जाएँ ,
पर वहीँ लौट कर आते हैं ,
है कारण बहुत छोटा सा ,
पर महत्व बहुत रखता है ,
प्यार और अपनत्व ,
केवल वहीँ मिलता है ,
सब साथी बिछुड गए है ,
पर सब लौट कर जाएंगे ,
फिर वहीँ मिल पाएंगे |
आशा
प्रवासी के दर्द को बयां करती हर एक पंक्ति...में एक आकांक्षा .और अंत में एक आशा .....मिलने की..........
जवाब देंहटाएंप्रवासी चाहे पक्षी हो चाहे इंसान उसे चैन अपने देश अपने परिवेश में ही मिलता है ! भोजन और जीविका की तलाश उन्हें सुदूर देशों की यात्रा के लिये विवश करती है पर मन तो वहीं कहीं अटका रह जाता है अपने छोटे से नीड़ में ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंरोजगार या किस्मत ले जाती है दूर देश मगर मन तो अपनी धरती पर ही अटका होता होगा ...
जवाब देंहटाएंप्रवासियों की आस पूरी हो ...
शुभकामनायें ...!
क्या कहें..हमारा ही दर्द है.
जवाब देंहटाएंक्या लिखते हो आप, मुझे तो मज़ा आ जाता है जब भी आपकी कविता पढ़ता हूँ ...
जवाब देंहटाएंजारी रखिये ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
सब साथी बिछुड गए है ,
जवाब देंहटाएंपर सब लौट कर जाएंगे ,
फिर वहीँ मिल पाएंगे |
...सुन्दर और सार्थक भाव लिए रचना...बधाई.
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'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.
प्रवासी के मन की व्यथा को सही शब्द दिए हैं ..अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्यार और अपनत्व केवल वहीं मिलता है ... सुंदर मनोभावों को चित्रित करती सुंदर कविता।
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