जाने कहां खो गया ,
मेरी छाया से भी दूर हो गया ,
जब तक लौट कर आएगा,
बहुत देर हो जाएगी ,
मुझे क्या पहचान पाएगा ,
है वह मेरा अतीत ,
जिसने मिलना भी ना चाहा ,
वर्तमान में भी उसे,
मेरी याद नहीं आई ,
है यह कैसी रुसवाई ,
मेरा समर्पण याद नीं आया ,
ख्यालों की दुनिया सीमित की ,
खुद ही तक सीमित रहा ,
मेरा ख्याल नहीं आया ,
सीमाएं छोड़ नहीं पाया ,
खोया रहा अपने में ,
मुझे अधर में लटकाया ,
था वह मेरा अतीत ,
जुड़ा हुआ था बचपन से ,
यदि वर्त्तमान में भी होता ,
दुःख मुझे कभी ना होता ,
मैं उसी तरह प्यार करती ,
अपनाती स्नेह देती ,
खोया हुआ जब भी मिलता ,
अपनेपास छिपा लेती ,
पर वह मुझे समझ ना पाया ,
वफा का मोल न कर पाया ,
यदि वह पहचान लेता ,
कुछ तो मेरा साथ देता ,
गैरों सा व्यवहार न करता ,
मेरे साथ न्याय करता |
आशा
मुझे यह कविता बहुत ही अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंजिसके बारे में जितना जुदाई कि वेदना महसूस करो वो उतना ही पीड़ा देता है....बेहतर है ऐसी वेदना से खुद को दूर रखें.
जवाब देंहटाएंसुंदर मार्मिक रचना.
अतीत की छलनाओं से खुद को मुक्त कर पाना प्राय: मुश्किल हो जाता है ! लेकिन जीवन है आगे बढ़ने का नाम ! बहुत सुन्दर और प्यारी रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंbhavo kee sunder abhivykti.......
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।