20 नवंबर, 2010

ना जाना ऐसे ऑफिस में

ना जाना ऐसे ऑफिस में ,
जिसमें बिना 'मनी',
कुछ काम ना हो ,
चक्कर लगाते रह जाओगे ,
था काम क्या
यह भी भूल जाओगे |
वहाँ हर मेज़ पर ,
बड़े २ झमेले हैं ,
सब आस लगाए बैठे हैं ,
हैं ऐसे गिद्ध भी ,
जो ताक लगाये बैठे हैं |
नोटों की एक झलक भी ,
यदि जेबों में दिखाई दी
आख़िरी पैसा,
तक छुड़ा लेंगे,
तभी चैन की सांस लेंगे |
आदर्श अगर बघारा तुमने ,
और ना ढीली अंटी की ,
लगाते रहोगे ,
चक्कर पर चक्कर ,
फिर भी काम ,
ना करवा पाओगे |
वहाँ कोई भी सगा नहीं है ,
दो मेज़ों में दूरी नहीं है ,
जब मेज़ों के नीचे से ,
मोटी रकम पहुँचती है ,
सिलसिला काम का ,
तभी शुरू होता है |
यदि है इतनी जानकारी ,
और दिलेरी दिल दिमाग में ,
तभी वहाँ का रुख करना ,
वरना भूले से भी कभी ,
उधर की ओर मुँह नहीं करना |
लगे मुखौटे चेहरे पर ,
असलियत कोई नहीं जानता ,
कथनी और करनी की दूरी ,
भी ना पहचान पाता ,
भूले से यदि फँस जाओ,
नोट साथ लेते जाना ,
तभी होगा कुछ हासिल ,
नहीं तो दीमक के बमीटे से,
कुछ भी हाथ न आयेगा |
है महिमा रिश्वत की अनोखी ,
जो भी इसे जान पाया ,
बहती गंगा में हाथ धो ,
मज़ा ज़िन्दगी का लूट पाया ,
अंत चाहे जो भी हो ,
वह वर्तमान में जीता है ,
घूस खोरी को भी ,
अपनी आय समझ लेता है |


आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. शायद ही आपको दूसरा ऐसा आफिस मिले जहाँ यह सब सुविधा ना हो , सुंदर रचना बधाई

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  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  3. रिश्वत का जंजाल इस तरह से सरकारी कार्यालयों की कार्यशैली में फ़ैल चुका है कि वास्तव में इसके बिना कोई कार्य नहीं होता ! इसलिए मुसीबत में फँसे किसी भी व्यक्ति की मुक्ति तब तक नहीं होती जब तक उसकी जेब भी पैसों के भार से मुक्त नहीं हो जाती ! एक कटु सच्ची को बयान करती शानदार रचना ! बधाई

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  4. सुन्दर और सामयिक पोस्ट.रिश्वतखोरी अपने देश में चरम पर है. शिकायत भी किससे की जाए,जो शिकायत सुनने वाला बैठा है वो भी रिश्वतखोर है.
    मेरा एक दोहा है:-
    रिश्वतखोरी बन गई , सामाजिक वरदान.
    कुछ के इससे बन गए, आलीशान मकान.

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  5. सता और तंत्र के प्रति बेख़ौफ़ असहम्ति है इस कविता में। व्यंजना और लक्षणा में नहीं। अभिधा में! शब्दों में आक्रोश है। और जो सच है उसे बताने में लाग-लपेट क्यों? बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

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  6. aise nahi hamne bhrasth desho ki sunchi me naam pa liya hai..........:)
    bahut mehnat karni pari hai...:D

    waise aapki ek ek baat sach hai..

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  7. लेकिन आज ऐसे औफिस मिलना मुश्किल है जहाँ रिश्वत खोरी और भ्रष्टाचार न हो.अब तो private कम्पनियों में भी रिश्वत का चलन शुरू हो गया है .
    आज कल जो हो रहा है उसे आपने अच्छी तरह से उभारा है.

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  8. समसामयिक अच्छी पोस्ट ...अब तो यह सब अपना हक समझने लगे हैं

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  9. समाज की गन्दगी को उजागर करती सुन्दर रचना !

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  10. क्या -क्या कह दिया हैं जी आपने,

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  11. आप सब की टिप्पणियाँ मुझे प्रोत्साहित करती हें और लेखन को बल देती हें |बहुत बहुत आभार
    आशा

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  12. बहुत सुन्दर रचना प्रकाशित की है आपने!
    इसकी चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी लगाई गई है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/345.html

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