28 नवंबर, 2010

आखिर कहाँ जायेगा

चेहरे पर नकाब लगाये
या बार-बार चेहरा बदले
है वह क्या ? जान नहीं पाता
पहचान नहीं पाता|
विश्वास टूट जाता है
 चेहरे पर चेहरा देख
हर बार अजनबी अहसास
अपना सा नहीं लगता |
वादा करके मुकर जाना
हर बात को हवा देना
उस पर अडिग न रहना
कभी मेरा हो नहीं सकता|
शब्द जाल बुनने वाला
बिना बात उलझाने वाला
सरल स्वभाव हो नहीं सकता |
गैरों सा व्यवहार करके
भरी महफिल में रुलाने वाला
अवमानना करने वाला
अपना हो नहीं सकता |
दूसरे के ग़म को
हँसी में उड़ाने वाला
सतही व्यवहार वाला
खुद का भी हो नहीं सकता |
कसम खाई हो जिसने
मर मिट जाने की
किसी को न अपनाने की
ना तो खुद का ही हुआ
और ना इस दुनिया में  किसी का |
वह यदि किसी का न हुआ
तो आखिर कहाँ जायेगा
समय की उड़ती चिंगारियों से ,
अपने को कैसे बचा पायेगा |


आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. समय की उडती चिंगारियों से ,
    अपने को कैसे बचा पाएगा |
    बहुत गहरा प्रश्न किया है आपने
    सुंदर रचना बधाई!

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  2. Kabhi kabhi kisi ko pahchaanna aasaan nahi hota ... makaab laga kar chalti hai ye duniya ...

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  3. अधिकतर चेहरे ऐसे ही हैं...क्या करें.

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  4. काफी दिन बाद आपके ब्लॉग पे आया..बहुत सी कवितायें पढनी है...
    आपके ब्लॉग का जो बैनर चित्र है वो बहुत ज्यादा पसंद आया...कुछ सेकण्ड के लिए तो बस देखते रह गया :)

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  5. .

    अपने को कब तक बहकाएगा ,
    समय की उडती चिंगारियों से ,
    अपने को कैसे बचा पाएगा ...

    ----

    बहुत सार्थक रचना। किसी का होकर किसी के लिए जीने में जो मज़ा है वो यूँ ही जीने में नहीं।

    .

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  6. कसम खाई हो जिसने ,
    मर मिट जाने की ,
    किसी को न अपनाने की ,
    ना तो खुद का ही हुआ ,
    और ना इस दुनिया का ,
    ना ही किसी का हो पाया ,
    वह यदि किसी का न हुआ ,
    तो आखिर कहां जाएगा ,
    ऐसे आदमी दुनियां में कैसे जीते हैं , यह सच सबके सामने आने में देर नहीं लगती....बहुत मार्मिक भाव पर लिखी कविता ..शुभकामनायें
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  7. बहुत गहरी सोच किये सार्थक अभिव्यक्ति ! इतने सारे चेहरों में एक सच्चा और असली चेहरा पहचानना वाकई बहुत मुश्किल होता है ! सुन्दर रचना !

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