कोहरे की घनी चादर
यह ठिठुरन और
ठंडी हवा की चुभन
हम महसूस करते हैं
सब नहीं
सुबह होते हुए भी
रात के अँधेरे का अहसास
हमें होता है
सब को नहीं
आगे कदम बढ़ते जाते हैं
सड़क किनारे अलाव जलाये
कुछ बच्चे बैठे
कदम ठिठक जाते हैं
आँखों के इशारे
उन्हें मौन निमंत्रण देते
इस मौसम से हो कर अनजान
तुम क्यूँ बैठे हो यहाँ
ऐसा क्या खाते हो
जो इसे सहन कर पाते हो
उत्तर बहुत स्पष्ट था
रूखी रोटी और नमक मिर्च
प्रगतिशील देश के
आने वाले कर्णधार
ये नौनिहाल
क्या कल तक जी पायेंगे
दूसरा सबेरा देख पायेंगे
मन में यह विचार उठा
पर यह मेरा भ्रम था
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
जैसा मैंने सोचा था
अगले दिन भी
कुछ देर से ही सही
कदम उस ओर ही बढ़े
सब को सुबह चहकते पाया
लगा मौसम से सामंजस्य
उन्होंने कर लिया है
धीरे से एक उत्तर भी उछाला
कैसा मौसम कैसी ठिठुरन
अभी काम पर जाना है
सुन कर यह उत्तर
खुद को अपाहिज सा पाया
असहज सा पाया
इतने सारे गर्म कपड़ों से
तन दाब ढाँक बाहर निकले
फिर भी ठण्ड से
स्वयं को ठिठुरते पाया |
आशा
जाड़ा वाक़ई शुरू हो चुका है.आपकी रचना सामयिक और अच्छी है.
जवाब देंहटाएंयही तो यथार्थ है.
जवाब देंहटाएंहम सब कुछ देखते हैं पर कुछ कर नहीं पाते.
सादर
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
अति प्रशंसनीय एवं मनमोहक कविता
कविता मन को छू गयी।
सर्दी के आगमन का अहसास जिस तरह से इस कविता ने कराया
उसका जवाब नही
सुन्दर कविता के लिए बधाई
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
यथार्थ को कहती अच्छी रचना ...आपकी संवेदनशीलता का पता चलता है ..
जवाब देंहटाएं:( कड़वी सच्चाई...
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ
यथार्थ से परिचय करते ठिठुरने वाली रचना.. बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंहमारे देश में जाड़ा मनाना भी एक तरह की विलासिता है जहां सैकड़ों लोग सड़कों और फुटपाथों पर खुले आकाश के नीचे नाम मात्र के कपड़ों में कड़कड़ाती सर्दी में रातें गुजारने के लिये विवश हैं ! ऐसे में अपने तन पर चढ़ा एक स्वेटर भी शर्मिंदगी का एहसास कराता है ! बहुत मर्मस्पर्शी रचना ! बहुत बढ़िया और विचारोत्तेजक !
जवाब देंहटाएंwakayee ,ekdam kadvi sachchaee likh di hai aapne.pidadayak.
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