माँ मैं तेरी बगिया की ,
एक नन्हीं कली ,
क्यूँ स्वीकार नहीं किया तूने ,
कैसे भूल गई मुझे ,
छोड़ गई मझधार में
तू तो लौट गई
अपनी दुनिया में
मुझे झूला घर में छोड़ गई ,
क्या तुझे पता है ,
जब-जब आँख लगी मेरी ,
तेरी सूरत ही याद आई ,
तेरा स्पर्श कभी न भूल पाई ,
बस मेरा इतना ही तो कसूर था ,
तेरी लड़के की आस पूरी न हुई ,
और मैं तेरी गोद में आई ,
तू कितनी पाषाण हृदय हो गई ,
सारी नफरत, सारा गुस्सा ,
मुझ पर ही उतार डाला ,
मुझे रोता छोड़ गई ,
और फिर कभी न लौटी,
अब मैं बड़ी हो गई हूँ ,
अच्छी तरह समझती हूँ
मेरा भविष्य क्या होगा
मुझे कौन अपनाएगा ,
मैं अकेली
इतना बड़ा जहान ,
कब क्या होगा
इस तक का मुझे पता नहीं है ,
फिर भी माँ तेरा धन्यवाद
कि तूने मुझे जन्म दिया ,
मनुष्य जीवन समझने का
एक अवसर तो मुझे दिया !
आशा
bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंफिर भी माँ तेरा धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकि तूने मुझे जन्म दिया,
मनुष्य जीवन समझने का
एक अवसर तो मुझे दिया !
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
संवेदनशील जज्बातोँ को व्यक्त करती सुन्दर रचना ।
इस कविता को प्रस्तुत करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना|
जवाब देंहटाएंबालमन के विचारों से ओत-प्रोत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंलोहड़ी और उत्तरायणी की सभी को शुभकामनाएँ!
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना|......
बहुत सुन्दर रचना . लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंआभार
भावपूर्ण कविता के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति पर्व की शुभकामनाएँ|
एक मासूम कन्या के मनोभावों का बहुत सुन्दर और सटीक चित्रण ! मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंअतिउत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार इतनी सुन्दर कविताओं के लिए
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