छोटी  बड़ी  रंग बिरंगी ,
भाँति-भाँति की कई पतंग ,
आसमान में उड़ती दिखतीं  ,
करतीं उत्पन्न दृश्य मनोरम  ,
होती हैं सभी सहोदरा ,
पर डोर होती अलग-अलग ,
उड़ कर जाने कहाँ  जायेंगी ,
होगा क्या भविष्य उनका ,
पर वे हैं अपार प्रसन्न  अपने
रंगीन अल्प कालिक जीवन से ,
बाँटती खुशियाँ नाच-नाच  कर ,
खुले आसमान में ,
हवा के संग रेस लगा कर |
अधिक बंधन स्वीकार नहीं उन्हें ,
जैसे ही डोर टूट जाती है ,
वे स्वतंत्र हो उड़ जाती हैं,
जाने कहाँ अंत हीन आकाश में ,
दिशा दशा होती अनिश्चित  उनकी ,
ठीक उसी प्रकार
जैसे आत्मा शरीर के अन्दर |
उन्मुक्त हो जाने कहाँ जायेगी,
कहाँ रहेगी, कहाँ विश्राम करेगी ,
या यूँ ही घूमती रहेगी ,
नीले-नीले अम्बर में ,
कोई ना जान पाया अब तक
बस सोचा ही जा सकता है
समानता है कितनी ,
आत्मा और पतंग में |
आशा
 
 
बहुत ही गहरी सोच को उद्घाटित करती कविता.
जवाब देंहटाएंआपको मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
Di aapki utkrisht soch ko salam...:)
जवाब देंहटाएंaatma ko udte patango se compare kiya..achchha lga.
गहन सोच को दर्शाती दर्शन तत्व से परिपूर्ण एक उत्कृष्ट रचना ! पतंगो के इस अनुपम पर्व पर आपको सपरिवार मंगलकामनायें !
जवाब देंहटाएंkitna achcha likhtin hain aap.
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही आत्मा और पतंगों में गहरी समानता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना.....बधाई...
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