22 फ़रवरी, 2011

एक भूल हुई

ना जाने कब उसे
अपनी चाहत समझ बैठा ,
है वह कौन
जान नहीं पाया |
खिलते फूल सी मुस्कान
भीड़ के बीच खोजना चाही
खोजता ही रह गया
नहीं जान पाया है वह कौन |
कई पत्र लिखे
लिख कर फाड़े
कुछ भेजे, कुछ पड़े रहे
उत्तर एक का भी
आज तक नहीं आया |
अब तो अकेलापन
जहरीले कंटक सा चुभता है
वह जाने कहाँ खो गयी
मुझे बेचैन कर गयी |
अपने सामने पा कर उसे
कुछ मन की कहने के लिये
उसकी मौन स्वीकृति के लिये
बेतहाशा तरसा हूँ |
सोचता हूँ कोई उपाय खोजूँ
उस तक पहुँच पाने का
उसे यदि खोज पाऊँ
व्यथा अपने मन की
उसे सुनाऊँ |
बदनाम हुआ जिसके लिए
बस सपनों में ही आती है
कभी हँसाती तो कभी रुलाती है
दिल की बात अनकही रह गयी है
मन में निराशा घर कर गयी है |
कभी कभी ऐसा लगता है
शायद कभी न मिल पायेंगे
अनजाने में एक भूल हुई
खुद पर इतना ऐतबार किया
उसे अपनी चाहत बना बैठा
जब चाहत पूरी न हुई
खुद को गुनाहगार मान बैठा |

आशा







8 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की बेचैनी को दर्शाती एक सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दरता से मन के भाव लिखे हैं -
    बोलती हुई सी रचना -
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. ....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं।
    अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी ये रचना मन को स्पंदित कर गया है .. एकसाथ हर्ष-विषाद की अनुभूति हो रही है....सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. च्छी भावनात्मक अभिव्यक्ति देने में सफल रही हैं आप ! शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    बहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है.......... शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: