20 मार्च, 2011

आँखें आद्र हुईं


बागवान ने बड़े प्यार से
पाला पोसा बड़ा किया
सुन्दर स्वस्थ देख उन्हें
अपने पर भी गर्व किया |
दो फूल लगे एक डाल पर
सौहार्द की मिसाल लिए
साथ ही विकसित हुए
कलिकाओं से फूल बने |
दिन रात साथ रहते थे
दृष्टा को सुख देते थे
सुख
की दुनिया में खोए
अपने पर था नाज़ उन्हें|
एक अजनबी वहाँ आया
उसने डाली को हिलाया
एक फूल डाली से टूटा
गुलदस्ते की शोभा बना |
दूसरा भी कमजोर होगया
फिर पनप नहीं पाया
अब ना वह प्रेम था
और ना ही अपनापन |
सब बदल गए थे
आज के सन्दर्भ में
वे अजनबी हो गए थे
रह कर विभिन्न परिवेश में |
माली ने जब यह सब देखा
आँखें आद्र हुईं उसकी
पर वह यह भूल गया था
है जीवन का कटु सत्य यही |

आशा


8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    एक अजनबी वहाँ आया
    उसने डाली को हिलाया
    एक फूल डाली से टूटा
    गुलदस्ते की शोभा बना |
    दूसरा भी कमजोर होगया
    ......कटु सत्य प्रभावशाली प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  2. होली की हार्दिक शुभ कामनाएं आपको और आपके पूरे परिवार को

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  3. टहनी से टूटा हुआ फूल,चाहें गुलदस्ते में सजे या कमजोर बन एकाकी रहे मुरझा ही जाता है |माली नें जतन से पोषण करा ,पर हर फूल की अपनीं -अपनीं नियति होती है |ये ही कटु सत्य है |

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  4. सत्य और हकीकत से रूबरू कराती सुन्दर रचना!

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  5. नि:संदेह रूप से हर एक पुष्प की अपनी-अपनी नियति होती है ! जिसे गुलदस्ते की शोभा बनना था वह गुलदस्ते में सज गया और जिसके भाग्य में धूल में मिलना था वह धूल में मिल गया ! माली अपना कर्म कर सकता है किसीका भाग्य नहीं बदल सकता ! संवेदना से भरपूर एक सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  6. कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
    कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
    और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
    फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
    आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
    आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-



    बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  7. सुंदर कविता। जिसकी सुंदरता बयां करने के लिए मेरे पास अल्फाज नहीं हैं।

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  8. आशीर्वाद चाहिए आपका जिन्दगी के लिए.....संजय भास्कर
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    धन्यवाद
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/03/blog-post.html

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