24 मार्च, 2011

जीवन

माटी से दीपक बनाया
अग्नि से उसे पकाया
सुन्दर दिखे इस प्रयास में
कई रंगों से उसे सजाया |
छोटा सा जीवन उसका
स्नेह भरा बाती डाली
ज्योति जब जलने लगी
रौशनी फैलने लगी |
मार्ग पर चलने वालों की
आवश्यकता उसने समझी
कल्याण भावना से भरा
सेवा में वह जुट गया |
कल्याण मार्ग अवरुद्ध ना हो
मार्ग सदा रौशन रहे,
वायु के झोंकों से,
उसे बचाने के लिए
कई प्रयास अनवरत किये |
वह टिमटिमाता रहा
स्नेह चुकता गया
बाती
ने भी साथ छोड़ा
लौ तेज हुई
वह भभका और बुझ गया
मिट्टी से बना था
उसमें ही विलीन हो गया |
पर एक नए दिए ने
उसका स्थान लिया
जो मार्ग दिखाया उसने
उसी को अपना लिया
और परिष्कृत किया |
परिवर्तन अपेक्षित था
एक गया दूसरा आया
यही क्रम चलता रहा
संसार आगे बढ़ता रहा |

आशा


11 टिप्‍पणियां:

  1. दीप से दीप जलाते रहो ,सार्थक कविता

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  2. आदरणीय आशा दी ,
    बहुत सुन्दर भाव हैं ।
    जीवन का सच इतने सरल शब्दों में..
    वाकई कमाल ही कर दिया आपने !
    सादर..

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  3. aasha ji namste...bhut khubsurat likha aapne...aapko bhut bhut dhanybad...

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  4. जीवन के गहन गूढ़ दर्शन को सहज सरल शब्दों में सार्थक अभिव्यक्ति दी है आपने ! दीपक का कार्य ही अन्धकार को मिटा कर दूसरों की राहों को प्रकाशित करना है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  5. यह दीये ही नहीं,सृष्टि-चक्र की गाथा है।

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  6. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    सार्थक शानदार चित्रण!बहुत सुन्दर रचना

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  7. परिवर्तन अपेक्षित था
    एक गया दूसरा आया
    यही क्रम चलता रहा
    संसार आगे बढ़ता रहा |
    यथार्थ के धरातल पर.... सुन्दर भाव लिए....एक सार्थक रचना

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  8. बहुत ही खूबसूरत शब्‍द रचना ।

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