है व्यक्ति परक बहुत चंचल
बहता निरंतर
पहाड़ों से निकलती
श्वेत धवल जल की धारा सा
ले लेता रूप जल प्रपात का
फिर कल कल करता झरने सा
कभी शांत , कभी आकुल ,
तो उत्श्रृखल कभी
हो जाता वेग वती सा |
जल की गति
बाधित की जा सकती है
पर मन पर नियंत्रण कहाँ |
बंधन स्वीकार नहीं उसको
निर्वाध गति चाहता है
होता है व्यक्ति परक
जो दिशा दश मिलती है
उस पर ही चलता जाता है |
बुद्धि का अंकुश नहीं चाहता
भावनाओं से दूर बहुत
अपनी स्वतंत्रता चाहता है |
आशा
बहता निरंतर
पहाड़ों से निकलती
श्वेत धवल जल की धारा सा
ले लेता रूप जल प्रपात का
फिर कल कल करता झरने सा
कभी शांत , कभी आकुल ,
तो उत्श्रृखल कभी
हो जाता वेग वती सा |
जल की गति
बाधित की जा सकती है
पर मन पर नियंत्रण कहाँ |
बंधन स्वीकार नहीं उसको
निर्वाध गति चाहता है
होता है व्यक्ति परक
जो दिशा दश मिलती है
उस पर ही चलता जाता है |
बुद्धि का अंकुश नहीं चाहता
भावनाओं से दूर बहुत
अपनी स्वतंत्रता चाहता है |
आशा
जल की गति
जवाब देंहटाएंबाधित की जा सकती है
पर मन पर नियंत्रण कहाँ |
बिलकुल सच कहा है..मन पर नियंत्रण करना ही तो सबसे कठिन होता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
मन पर किसका नियंत्रण रहा है। जिसने मन साध लिया उसने जग जीत लिया।
जवाब देंहटाएंमन बुद्धि का नियंत्रण नहीं चाहता ...उसकी उड़ान बिना पंखों की स्वतंत्र निर्बाध है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना !
बहुत सुन्दर और बहुत सच्ची बात ... और बड़ी सुन्दरता से आपने मन के भावों को अंकित किया .. सादर
जवाब देंहटाएंजल की गति
जवाब देंहटाएंबाधित की जा सकती है
पर मन पर नियंत्रण कहाँ |
बहुत सुन्दर रचना है
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
........बहुत सुन्दर रचना है