07 अप्रैल, 2011

है व्यक्ति परक


है व्यक्ति परक बहुत चंचल
बहता निरंतर
पहाड़ों से निकलती
श्वेत धवल जल की धारा सा
ले लेता रूप जल प्रपात का
फिर कल कल करता झरने सा
कभी शांत , कभी आकुल ,
तो उत्श्रृखल कभी
हो जाता वेग वती सा |
जल की गति
बाधित की जा सकती है
पर मन पर नियंत्रण कहाँ |
बंधन स्वीकार नहीं उसको
निर्वाध गति चाहता है
होता है व्यक्ति परक
जो दिशा दश मिलती है
उस पर ही चलता जाता है |
बुद्धि का अंकुश नहीं चाहता
भावनाओं से दूर बहुत
अपनी स्वतंत्रता चाहता है |
आशा




6 टिप्‍पणियां:

  1. जल की गति
    बाधित की जा सकती है
    पर मन पर नियंत्रण कहाँ |

    बिलकुल सच कहा है..मन पर नियंत्रण करना ही तो सबसे कठिन होता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  2. मन पर किसका नियंत्रण रहा है। जिसने मन साध लिया उसने जग जीत लिया।

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  3. मन बुद्धि का नियंत्रण नहीं चाहता ...उसकी उड़ान बिना पंखों की स्वतंत्र निर्बाध है ...
    भावपूर्ण रचना !

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  4. बहुत सुन्दर और बहुत सच्ची बात ... और बड़ी सुन्दरता से आपने मन के भावों को अंकित किया .. सादर

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  5. जल की गति
    बाधित की जा सकती है
    पर मन पर नियंत्रण कहाँ |

    बहुत सुन्दर रचना है

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  6. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ........बहुत सुन्दर रचना है

    जवाब देंहटाएं

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