हो मेरे ह्रदय की धडकन
तुम में ही समाहित मेरा मन
तुम्हारी इच्छा थी
मैं कुछ लिखूं
पर सोचता ही रह गया
तुम पर क्या लिखूं |
तुम में छिपी कई कलाएं
मैं गाना तक नहीं जानता
है हम में इतना अंतर
जितना पृथ्वी और अम्बर के अंदर
फिर भी अलग नहीं हम
मिले रहे क्षितिज की तरह
मैं अधिक ही व्यस्त रहा
फिर भी दूरी सह ना सका
कई बार लौट कर आया
जब भी कोई तकरार हुई
क्रोध पर काबू किया
भुला दिया उसे
असहयोग तक दर्ज न किया |
जब भी कभी मनन करता हूँ
सोचता ही रह जाता हूँ
है ऐसा क्या तुममें
मुझे पूरा ही
बदल कर रख दिया |
यह दैहिक मोह नहीं लगता
बैचारिक सामंजस्य भी नहीं ,
कार्य कुशल तो सभी होते हैं
कर्त्तव्य परायण भी ।
पर ना जाने तुम में है क्या ?
लगता जन्म जन्मांतर का साथ
जिसे निभाया बहुत जतन से
अब ना रहे कोई आकांक्षा अधूरी
संतुष्टि हो जीवन में |
आशा
तुम में ही समाहित मेरा मन
तुम्हारी इच्छा थी
मैं कुछ लिखूं
पर सोचता ही रह गया
तुम पर क्या लिखूं |
तुम में छिपी कई कलाएं
मैं गाना तक नहीं जानता
है हम में इतना अंतर
जितना पृथ्वी और अम्बर के अंदर
फिर भी अलग नहीं हम
मिले रहे क्षितिज की तरह
मैं अधिक ही व्यस्त रहा
फिर भी दूरी सह ना सका
कई बार लौट कर आया
जब भी कोई तकरार हुई
क्रोध पर काबू किया
भुला दिया उसे
असहयोग तक दर्ज न किया |
जब भी कभी मनन करता हूँ
सोचता ही रह जाता हूँ
है ऐसा क्या तुममें
मुझे पूरा ही
बदल कर रख दिया |
यह दैहिक मोह नहीं लगता
बैचारिक सामंजस्य भी नहीं ,
कार्य कुशल तो सभी होते हैं
कर्त्तव्य परायण भी ।
पर ना जाने तुम में है क्या ?
लगता जन्म जन्मांतर का साथ
जिसे निभाया बहुत जतन से
अब ना रहे कोई आकांक्षा अधूरी
संतुष्टि हो जीवन में |
आशा
पर ना जाने तुम में है क्या ?
जवाब देंहटाएंलगता जन्म जन्मांतर का साथ
जिसे निभाया बहुत जतन से
जीवन जीने की प्रबल इच्छा !
सुंदर रचना ...!
जब भी कभी मनन करता हूँ
जवाब देंहटाएंसोचता ही रह जाता हूँ
है ऐसा क्या तुममें
मुझे पूरा ही
बदल कर रख दिया |... pyaar ki hai ankahi baaten, usi me itni taakat hoti hai
जब भी कभी मनन करता हूँ
जवाब देंहटाएंसोचता ही रह जाता हूँ
है ऐसा क्या तुममें
मुझे पूरा ही
बदल कर रख दिया |
यह दैहिक मोह नहीं लगता
बैचारिक सामंजस्य भी नहीं ,
कार्य कुशल तो सभी होते हैं
कर्त्तव्य परायण भी ।
Bahut hi ganbhir, bhaw pranav aur antarman ki nishkalush anubhootiyon ki saarthak abhivakti.
बहुत भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
.....सार्थक सन्देश देती रचना
कार्य कुशल तो सभी होते हैं
जवाब देंहटाएंकर्त्तव्य परायण भी ।
पर ना जाने तुम में है क्या ?
--
सुन्दर रचना।
यही सम्मोहन है जिसका अर्थ कोई समझ नहीं पाता ! बहुत प्यार भरी कोमल सी रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजब भी कभी मनन करता हूँ
जवाब देंहटाएंसोचता ही रह जाता हूँ......bahut sundar bhawon wali kavita.
Hriday ki dharkan aur man ki ikshaon ka samayojan bahut achha hai...Bahut hi komal ehsason ki khushbu se rachi basi rachna..
जवाब देंहटाएंDhanyavaad hamein padhne ka mauka dene ke liye...
जीवन जीने की प्रबल इच्छा !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ...!
कार्य कुशल तो सभी होते हैं
जवाब देंहटाएंकर्त्तव्य परायण भी ।
पर ना जाने तुम में है क्या ?
yahi to apki kavita ke visheshta hai kai prashn chhod jati hai sonchne ke liye , badhai
बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा दी ’
जवाब देंहटाएंसम्मोहित हो गयी हूं !सादर ..
आप सच में बहुत खुबसूरत लिखती हैं मैं आपके विचारों को प्रणाम करती हूँ |
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसासों से भरी रचना |