08 जून, 2011

है यह कैसा प्रजातंत्र


सत्य कथन सत्य आचरण
देश हित के लिए
बढ़ने लगे कदम
सोचा है प्रजातंत्र यहाँ
अपने विचार स्पष्ट कहना
है अधिकार यहाँ |
उसी अधिकार का उपयोग किया
सत्य कहा
कुछ गलत ना किया
फिर भी एक चिंगारी ने
पूरा पंडाल जला डाला
कितने ही आह्त हुए
गिनती तक ना हो पाई
सक्षम की लाठी चली
आंसुओं की धार बही
धारा थी इतनी प्रवाल कि
विचारों को भी बहा ले चली |
दूर दूर तक वे फैले
जनमानस में
चेतना भरने लगे
उन्हें जाग्रत करने के लिए
फिर भी अंदर ही अंदर
सक्षम को भी हिला गए |
स्वतंत्र रूप से अपने विचार
सांझा करने का अधिकार
क्या यहाँ नहीं है
जब कि देश का है नागरिक
स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की नहीं है |
आज भी बरसों बाद भी
मानसिकता वही है
जोर जबरदस्ती करने की
अपना अपना घर भरने की
आदत गई नहीं है |
यदि कोई सही मुद्दा उठे
नृशंसता पूर्ण कदम उठा
उसे दबा देने की
इच्छा मरी नहीं है |
है यह कैसा प्रजातंत्र
जो खून के आंसू रुलाता है
है कुछ लोगों की जागीर
उनको ही महत्त्व देता है |
यदि कोई अन्य बोले
होता है प्रहार इतना भारी
जड़ से ही हिला देता है
पूरी यही कोशिश होती है
फिर से कोई ना मुंह खोले |

आशा




5 टिप्‍पणियां:

  1. सही लिखा है आप ने, आज कल के हालात बद से भी बदतर हैं|

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  2. सचमुच - यही हल है हमारे प्रजातंत्र का - समसामयिक रचना आशा जी.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. जिस व्यवस्था में अपनी बात कहने की स्वतंत्रता ना हो, आम जनता के मूलभूत अधिकारों का हनन किया जाये और उसकी बुनियादी ज़रूरतों को अनदेखा कर केवल चंद गिने चुने सत्ता मद में डूबे लोगों की मर्जी के अनुरूप ही सब कुछ किया जाये वह प्रजातांत्रिक व्यवस्था तो हो ही नहीं सकती ! सुन्दर कविता ! बधाई !

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  4. सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति्…..

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